वैश्विक शिक्षक पुरस्कार विजेता की शिक्षण शैली

वैश्विक शिक्षक पुरस्कार विजेता की शिक्षण शैली

अशोक ओझा

कहने के लिए तो बच्चे किसी भी देश या समाज के भविष्य होते हैं लेकिन जो समाज इस तथ्य को महत्व नहीं देता वह प्रगति कैसे कर सकता है? बच्चों को प्रारम्भिक शिक्षा बेहतर कर समाज को बदला जा सकता है। लेकिन यह सब शिक्षक की योग्यता और उसकी  शैली पर निर्भर करता है। यदि भारत में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति का जायज़ा लें तो यह दृश्य दिखायी देता है:

शिक्षार्थी ज़मीन पर बैठते हैं, उन्हें किताबें नहीं मिलती, शिक्षक कक्षा में जाने की जल्दी में नहीं होते, बारिश के दिनों में छप्पर से पानी टपकता है और स्कूल के किसी कोने में मवेशी आराम फरमाते देखे जा सकते हैं। 

भारत कुल घरेलू आमदनी (जी डी पी) का लगभग साढ़े चार प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है। दुनिया में शिक्षा को  प्राथमिकता देने वाले देशों की सूची में भारत बासठवें (62) स्थान पर है। ऐसे देश में एक प्राथमिक शिक्षक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार प्राप्त करे तो सुखद आश्चर्य होता है। 

इस वर्ष (2020) सर्वश्रेष्ठ वैश्विक शिक्षक (ग्लोबल टीचर) का पुरस्कार जीतने वाले रणजीत सिंह दुसाले ने सोलापुर (महाराष्ट्र) में एक टूटे फूटे मकान में चल रहे स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। इस स्कूल के अधिकांश विद्यार्थी जनजाति समुदाय की लड़कियां थीं। अभावग्रस्त समाज में लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती। उनकी पुस्तकें उनकी मातृभाषा में नहीं थी। भारत में मातृभाषा की उपेक्षा एक आधुनिक चलन बन चुका  है। रणजीत सूचना-प्राद्योगिकी में प्रशिक्षित थे, लेकिन अनेक कारणों से उन्हें शिक्षक बनना पड़ा था। उन्होंने क्यू आर कोड के जरिए बच्चों की भाषा में कविताएं और अन्य पाठ संचित किए। इस प्रकार पहली से चौथी कक्षा तक की पाठ्य पुस्तकें स्थानीय भाषा, कन्नड़, में विकसित की और उन्हें अपने विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए प्रयुक्त किया। 

रणजीत सिंह दिसाले ने शिक्षक के रूप में अपने कार्यों को अनेक आयाम दिए। उन्होंने शिक्षा को शिक्षार्थी केंद्रित बनाया। प्राद्योगिकी का प्रयोग ग्रामीण बच्चों की शिक्षा के लिए भी किया जा सकता है, यह साबित करते हुए क्यू आर कोड का प्रयोग किया जिससे बच्चे अपने फ़ोन पर भी पाठ देख-पढ़ सकते हैं। शिक्षा में विद्यार्थियों के  माता पिता की भी सक्रिय भूमिका जोड़ी और समाज में शिक्षा के आभाव में जो भ्रांतियां फैली हैं, उन्हें दूर करने के लिए कदम उठाया। सबसे प्रमुख बात यह है कि बच्चों को स्थानीय समस्याओं से जोड़ते हुए वैश्विक समस्याओं से जोड़ने का कार्य किया। 

शिक्षा एक सामाजिक जिम्मेदारी है

दिसाले की शिक्षा पद्धति विद्यार्थियों को कक्षा में आकर्षित करने लगी क्यों कि दिसाले की शिक्षा पद्धति ने शिक्षा को बोझिल होने से बचाया। बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने का कार्य किया। चित्र और वीडियो के माध्यम से शिक्षार्थी का मनोरंजन भी किया। इस प्रकार उनकी शिक्षा शिक्षक केंद्रित न होकर विद्यार्थी केंद्रित हुई। शिक्षार्थी को ज्ञान प्राप्त करने में भागीदार बनाया गया जिससे वे स्वयं तैयार हो सकें कि उन्हें किस प्रकार बोलना, लिखना, और पढ़ने में प्रवीण होना चाहिए। कक्षा में तरह तरह के वैज्ञानिक प्रयोग करना और बच्चों को उसकी जानकारी देना एक रोचक गतिविधि थी। ऐसी अनेक गतिविधियां शिक्षार्थी के ज्ञान को बढ़ाने वाली थीं। 

दिसाले ने नयी पीढ़ी को शिक्षित करने के लिए माता पिता और समाज को पूरी तरह से जोड़ा। माता पिता अपने बच्चों को घर पर पढ़ने में सहयोग करें, इसके लिए समय निर्धारित किए गए और अलार्म के जरिए पूरे गांव को आगाह करने का कार्य भी किया गया। इस प्रकार शिक्षा केवल शिक्षार्थी का ही नहीं, समस्त गांव की जिम्मेदारी बन गयी। 

 सूचना-प्राद्योगिकी क्षेत्र में रणजीत की दक्षता प्राथमिक स्कूल के विद्यार्थियों के काम आयी। सौभाग्य से उनके अभिनव कार्यों को माइक्रोसॉफ्ट के प्रमुख सत्य नाडेला के आलावा भारत के शिक्षा मंत्रालय ने भी पहचाना। 'क्यू आर' कोड का प्रयोग कर अभावग्रस्त क्षेत्रों में, जहाँ बुनियादी सुविधावों का आभाव है, शिक्षा का प्रसार क्रांतिकारी ढंग से किया जा सकता है और हज़ारों होनहारों का जीवन सुधारा जा सकता है। 

क्विक रेस्पॉन्स कोड एक प्रकार का बार कोड है जिसे अनेक व्यावसायिक वस्तुओं पर उनके बारे में जानकारी देने के लिए अंकित किया जाता है। इस बार कोड में संबंधित वस्तुओं के बारे में विस्तृत जानकारी छुपायी जा सकती है। बार कोड छवि को विशेष तौर पर निर्मित तकनीकी उपकरणों से पढ़ा जा सकता है।  शिक्षा के क्षेत्र में इस कोड का  उपयोग कर रणजीत ने ऐसी शैक्षिक क्रांति ला दी जिससे जर्जर मकानों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को नया संसार मिला। उन्होंने सच ही कहा कि आज के विद्यार्थी इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं, उन्हें बीसवीं सदी के मुताबिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।लगभग एक दशक से गरीब और उपेक्षित बच्चों, ख़ास तौर पर लड़कियों को पढ़ाने का कार्य कर रहे दिसाले के समक्ष आगे बढ़ने के आलावा कोई विकल्प नहीं। सरकारी तंत्र द्वारा उनकी शैली को मान्यता प्रदान किया जाना एक बात है और भारत के अविकसित समाज में शैक्षिक क्रांति लाने के लिए अनगिनत शिक्षकों को नयी शैली में प्रशिक्षित करना एकदम अलग। लेकिन यही दिसाले के प्रयास की असली पहचान होगी।

आज दिसाले शिक्षा के माध्यम से सामजिक बुराइयों से लड़ रहे हैं। उनके गांव में माता पिता समझने लगे हैं कि छोटी उम्र में लड़कियों की शादी कर देना उचित नहीं।छात्राओं को शिक्षित करना और समाज को प्रगतिशील बनाने में योगदान करना आवश्यक है। यही नहीं उन्हें विश्व शांति के लिए कार्य करना है। यह कैसे होगा। दिसाले अपने शिक्षार्थी को कक्षा के बाहर ले जाते हैं और उन देशों के विद्यार्थियों से जोड़ते हैं जो अशांति, और उथल पुथल के शिकार हैं। दुनिया के 180 देशों में बच्चों को अनेक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है जिनमें भूख, बीमारी और हिंसात्मक गतिविधियां शामिल हैं। इन देशों के बच्चों विश्व की ज्वलंत समस्याओं को समझें और उसे दूर करने में योगदान  करें, यह भी शिक्षा का आवश्यक अंग होना चाहिए। दिसाले 'वर्चुअल फील्ड ट्रिप' के माध्यम से बच्चों को दुनिया के अनेक स्थानों से परिचित करते हैं, कंप्यूटर स्क्रीन का जरिए ताकि उनके विद्यार्थी वैश्विक परिस्थिति को समझ सकें। 

रणजीत सिंह दिसाले पुरस्कार की दस लाख डालर की राशि में से आधा तो उन प्रतिभागियों में बाँट दिया जी उनके साथ विश्व शिक्षक पुरष्कार के दावेदार थे। बाकी धनराशि वे शिक्षा को रचनात्मक रूप देने के लिए, अन्य शिक्षकों को अपनी अभिनव शैली विकसित करने के लिए खर्च करेंगे। उनका मानना है कि शिक्षा को बच्चों के ज़रूरतों के अनुरूप बनाने के लिए अनेक शिक्षक कार्य कर रहे हैं, जिन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ वैश्विक शिक्षक का पुरस्कार प्राप्त करने के बाद पुरस्कार राशि का आधा हिस्सा सहयोगी प्रतिभागियों में बांटने का निर्णय दिसाले ने इस कारण किया कि प्रतिभागी शिक्षक अपने लिए कार्य नहीं करते, वे बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए कार्य करते हैं। इस उदार दृष्टिकोण के लिए भारत के सुदूर प्रदेश में कार्यरत इस शिक्षक की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है।

Ashok OjhaComment