हिंदी से आत्म-निर्भरता -अशोक ओझा
अमेरिका में आप्रवासियों के लिए रोज़गार एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अपने देश में शिक्षा प्राप्त करने के बाद अमेरिका में बसे लोगों को अपनी योग्यता के अनुरूप नौकरी मिलना आसान नहीं। अन्य देशों के प्रमाण पत्र यहाँ काम नहीं आते। कुछ अपवाद ज़रूर हैं, जैसे सूचना-प्राद्योगिकी, मेडिकल या इंजीनीयरिंग आदि क्षेत्रों में संभवतः आपकी योग्यता का मूल्याँकन बेहतर ढंग से हो, लेकिन सामान्य विषयों के स्नातक या स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त लोगों को नौकरी ढूँढने के पूर्व किसी क़िस्म का प्रशिक्षण, लाइसेंस या सर्टिफ़िकेशन कोर्स ज़रूर कर लेना चाहिए। अमेरिका में न्यूनतम आय देने वाले स्थानों पर एशिया या अफ़्रीका के इंजीनीयर काम करते हुए देखे जा सकते हैं। भारत, चीन तथा अन्य विकास शील देशों में फ़ैशनेबल इन ब्राण्ड नाम दूक़ानों में कार्य करने वाले कर्म चारी अमेरिका में न्यूनतम या उससे कुछ अधिक वेतन पा सकते हैं। इन नौकरियों के लिए हाई स्कूल से अधिक की योग्यता नहीं चाहिए। ऐसे स्थानों में पेट्रोल पम्प, जिन्हें गैस स्टेशन कहते हैं, मैकडोनल्ड, बर्गर किंग, सेवन एलेवन, वालमार्ट, मेसीज़, बंकों के टेलर, सुपर मार्केट के कैशीयर आदि शामिल हैं । अमेरिकन इमीग्रेशन कौंसिल नामक संस्था के अनुसार 25 प्रतिशत आप्रवासी अपनी योग्यता के अनुरूप नौकरी नहीं पाते। लगभग २० लाख कॉलेज शिक्षित आप्रवासी ऐसे कार्यों में लगे हैं, जिन्हें करने के लिए सिर्फ स्कूली योग्यता की ज़रुरत होती है।
भारत में नब्बे दशक के प्रारम्भ में ही टाइम्स ऑफ इंडिया की नौकरी छोड़ चुका था । नब्बे के दशक में लगभग सात वर्षों तक फ़िल्म और विडियो निर्माता-निर्देशक का सुखमय जीवन मुंबई में बिता चुका था । लेकिन पढ़ने लिखने का शौक़ शेष था, नब्बे के दशक में अमेरिका प्रवास के दौरान सर्वप्रथम मैंने कम्प्यूटर पर काम करना सीखा। अमेरिकी विश्वविद्यालय में पढ़ने का शौक़ भी सन 1998 से 2001 के दौरान पूरा कर लिया था । न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय मामलों के अनेक कोर्सेज़ में पढ़ाई कर वहाँ की स्नातक डिग्री हासिल की, लेकिंन बॉर्नसएंडनोबलडॉटकाम की पहली नौकरी को दस वर्षों तक जारी रखा। घर ख़र्च चलाने के लिए और अमेरिका में स्थापित होने के उद्देश्य से एक बार फिर नियमित नौकरी का सहारा लिया, जो कि 2008 तक चला । बॉर्नसएंडनोबलडॉटकाम की पहली नौकरी ही, जिसे पाने के लिए कॉलेज शिक्षा आवश्यक नहीं था, आजीविका की श्रोत बनी रही। लेकिन इससे आत्म संतोष नहीं था। 2009 के प्रारम्भ में इस नौकरी से विदा लेने के बाद तात्कालिक निर्णय यह करना था कि मासिक आमदनी कैसे प्राप्त की जाय, जिससे घर का खर्च चले। लेकिन अब कुछ ऐसा करना चाहता था, जिससे स्वयं को संतोष मिले । यह उम्र का तक़ाज़ा था । मैं साठ की उम्र में प्रवेश भी करने वाला था ।
अमेरिका में बेरोजगारों को सबसे पहले बेरोजगार दफ्तर में पंजीकरण करा लेना चाहिए, ताकि वे बेरोजगार भत्ते प्राप्त करने के काबिल हो सकें। बेरोजगार कार्यालय में पंजीकरण? कुछ अजीब सा लगा-लेकिन भत्ते से वंचित होने का विचार डरावना साबित हो रहा था। पंजीकृत बेरोजगारों को नौकरी दिलाने के लिए सरकार के पास कई कार्यक्रम हैं। उनमें से एक यह है कि आपकी मनपसंद नौकरी के लिए यदि किसी क़िस्म का प्रशिक्षण या सर्टिफ़िकेशन कोर्स करना ज़रूरी है, तो उसे करने के लिए ज़रूरी आर्थिक सहायता के आप हक़दार हैं । रोज़गार दफ़्तर आपके लिए एक सलाहकार नियत करता है, जिसका काम संभावित नौकरी के लिए क़दम दर क़दम आपका मार्ग दर्शन करना है। बॉर्नसएंडनोबलडॉटकाम से अलग होने के बाद मुझे कम्पनी की ओर से प्रति माह मुआवज़ा मिलता था, जो कि छह माह तक चलने वाला था । प्रति माह बेरोज़गारी भत्ता भी प्राप्त होता था जो कि सीधे मेरे बैंक खाते में जामा होता था ।ओबामा प्रशासन ने बेरजोज़गारी भत्ते की अवधि छह माह से बढ़ा कर एक वर्ष के लिए कर दी थी । यानी सन 2009 में पूरे वर्ष मुझे यह आमदनी होने वाली थी । इस प्रकार प्रति माह बिल भरने के लिए पर्याप्त पैसे मिल जाते थे । बेरोज़गारी के अवसाद से बचने के लिए अमेरिका और भारत के कुछ पत्रों में कभी कभार लिखना भी हो जाता था लेकिन लेखन के इन अनुभवों पर फिर कभी!
सन 2009 में मैं मेरे निवास स्थान एडिसन नगर के स्कूल डिस्ट्रिक्ट वर्षों पूर्व में 'वैकल्पिक शिक्षक' के रूप में पंजीकृत हो चुका था । यहाँ सभी नगरों में चलाए जाने वाले प्राथमिक, माध्यमिक या उच्च विद्यालयों का संचालन स्कूल डिस्ट्रिक्ट में स्थापित बोर्ड द्वारा चलाया जाता है। हाई स्कूल तक शिक्षा नि:शुल्क दी जाती है। स्कूल बोर्ड स्वायतशासी संस्था है जिसका ख़र्च स्थानीय निवासियों से प्राप्त टैक्स और सरकारी अनुदान से चलता है। इस स्कूल डिस्ट्रिक्ट में बेरोज़गारी के दौर में 'वैकल्पिक शिक्षक' के रूप में कार्य करना यह आश्वस्त करता है कि आपके पास दैनिक आय का एक श्रोत है । 'वैकल्पिक शिक्षक' के लिए कॉलेज स्नातक होना ज़रूरी है ।
'वैकल्पिक शिक्षक' के रूप में मुझे यह आज़ादी थी कि जिस दिन स्कूल जाना होता, ऑनलाइन ऐप्प ‘जोबुलेटर ' की मदद से स्कूल चुन सकता था ।इस ऐप्प में विषय और शिक्षक का नाम होता था जिसकी अनुपस्थिति में उसके क्लास को संभालना होता था ।प्रातः सात से दोपहर ढाई बजे तक स्कूल में रहना पड़ता । प्रति पखवाड़े स्कूल डिस्ट्रिक्ट प्रशासन वैकल्पिक शिक्षक की मुआवज़ा राशि चेक द्वारा डाक से भेज देता ।'वैकल्पिक शिक्षक' की भूमिका निभाते हुए मेरे अंदर शिक्षक बनने की चाह घर करने लगी ।
वैकल्पिक शिक्षक का कार्य पूर्णकालिक न था । रिपोर्ट लिखने का काम संतोषजनक नहीं था क्यों कि उससे आमदनी सीमित थी, जब कि रिपोर्ट लिखने में पर्याप्त समय की ज़रूरत थी ।शिक्षक बनने की प्रक्रिया एक नए पेशे में प्रवेश करने की पहली सीढ़ी थी । उसके लिए प्रारम्भिक प्रामाणिकता प्राप्त करने के लिए न्यू जर्सी के शिक्षा कार्यालय में जाकर आवेदन भी भर आया । बताया गया कि शिक्षक बनने के लिए पहले प्रोविज़नल प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा । मुझसे कॉलेज शिक्षा के सभी प्रमाण पत्र माँगे गए ।मैंने भारत और न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी जहाँ से अंतरराष्ट्रीय विषयों के साथ बैचलर डिग्री के सभी अंक पत्र जमा किए । शिक्षा विभाग ने उन सबका आकलन करने के बाद सूचित किया कि प्रोविजनल प्रमाण पत्र पाने के लिए अमेरिकी इतिहास और विश्व इतिहास में नौ क्रेडिट कोर्स पूरा करना होगा । आश्चर्य की बात है कि दो बैचलर डिग्री होने के बाद नौ क्रेडिट कोर्स की आवश्यकता क्यों पड़ी? शिक्षा विभाग से पूछताछ करने में समय नष्ट करने के बजाय मैंने नौ क्रेडिट कोर्स लेना बेहतर समझा, रोज़गार विभाग को इसकी सूचना दे दी,क्यों कि रोज़गार विभाग की मेरी सलाहकार ने मुझे यह तय करने का मौक़ा दिया था यदि मुझे किसी पेशेवर नौकरी के लिए अतिरिक्त शिक्षा प्राप्त करना पड़े तो रोज़गार विभाग मेरी मदद करेगा और अतिरिक्त शिक्षा में आने वाले ख़र्च वहाँ करेगा । यह एक उत्साह जनक सौदा था ।मैंने अमेरिकी और विश्व इतिहास की विधिवत पढ़ाई के लिए न्यू जर्सी के सरकारी कीन विश्वविद्यालय में रोज़गार विभाग के ख़र्चे पर दाख़िला ले लिया। मुझे क्या पता कि एक वर्ष बाद इसी विश्वविद्यालय में स्टारटॉक हिंदी कार्यक्रम का निदेशक बनने का अवसर मिलेगा!
सन 2009 के फाल समेस्टर से कीन विश्वविद्यालय में नौ क्रेडिट की मेरी पढ़ाई शुरू होने वाली थी। उसके पूर्व जून माह में एक अवसर ऐसा मिला कि मेरा आत्म विश्वास नई ऊँचाइयाँ छूने लगा ।यह अवसर था आइवी लीग विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी ऑफ पेंन्सिलवेनिया में शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में दाख़िला । अमेरिका के हिंदी भाषाविदों में डॉ विजय गंभीर और उनके पति सुरेंद्र गंभीर के नाम प्रमुख हैं। दोनो की उम्र आज, सन 2018 में सातवें दशक में पहुँच चुकी है। इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय (सितम्बर 2018) विजय जी अस्वस्थ हैं, सुरेंद्र जी उनकी देखभाल अपने फ़िलाडेलफ़िया के अपार्टमेंट में कर रहे हैं, जहाँ वे अपने पुत्रों के निकट रहना चाहते हैं।
सन 2009 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनसिलवेनिया में जब स्टारटॉक शिक्षण प्रशिक्षण शिविर का आयोजन हुआ, गंभीर दम्पति साउथ एशिया इंस्टीच्यूट में 36 वर्षों तक हिंदी पढ़ा चुके थे। यह स्वाभाविक था कि स्टारटॉक प्रशासन उन्हें अपने भाषा शिक्षण अभियान में विशेषज्ञ के रूप में शामिल करता। जून-जुलाई में यू पेन में विजय गंभीर के निर्देशन में स्टारटॉक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन होने की घोषणा हुई जिसमें मैंने आवेदन किया और मेरा चयन हुआ। सुरेंद्र जी कार्यक्रम के आयोजन में सहयोगी थे। यह कार्यक्रम बिना ट्यूशन यानी निःशुल्क था। साथ में हर प्रतिभागी को एक हज़ार डॉलर का भत्ता भी दिया जाने वाला था। इस आवासीय कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के छात्रावास में रहने का प्रावधान था। दिन भर के कार्यक्रम के दौरान भोजन भी निःशुल्क। न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के बाद एक अन्य अमेरिकी विश्वविद्यालय में रहने और शिक्षा प्राप्त करने का दूसरा अनुभव प्राप्त करने का अनुभव बड़ा ही सुखद और आत्म विश्वास बढ़ाने वाला था। यू पेन में हमारा छात्रावास 15 मंजिली इमारत था। हमारे अपार्टमेंट में तीन कमरे और साझा बाथरूम था। महिला और पुरुषों के लिए अलग अलग अपार्टमेंट नियत किये जाते थे, लेकिन महिलाओं के लिए अलग विंग नहीं था। हमें पहचान पत्र दिए गए जिन्हें स्कैन कर इमारत में प्रवेश कर सकते थे।
यदि आपका पहचान पत्र खो गया तो प्रवेश द्वार पर बैठे कर्मचारी, जो ज्यादातर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं ही होते हैं, आपकी मदद कर सकते थे। बाद में मैंने अनेक विश्वविद्यालयों में यही नियम देखा। इस प्रकार छात्रों को रोजगार देने का यह सिलसिला अमेरिकी शिक्षण संस्थाओं में आम है।
स्टारटॉक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम दो सप्ताह की कार्यशाला के तौर पर तैयार किया गया था। हर दिन एक नए प्रशिक्षक की शिक्षण शैली को जानने सुनने का अवसर मिलता था। ये प्रशिक्षक विश्वविद्यालय के अनुभवी प्राध्यापक/प्रध्यापिकाएँ होते थे। दोपहर में कार्यक्रम निदेशिका विजय गंभीर दिन भर की गतिविधियों का सारांश प्रस्तुत करतीं और सभी प्रतिभागियों के विचार सुनतीं। दो सप्ताह में हम सबको यह पता चल गया कि बच्चों को पढ़ाते समय पाठ्यक्रम में समाहित गतिविधियों को अमल में लाना चाहिए, प्रामाणिक सामग्री, यदि वीडियो क्लिप या किसी वेब साइट पर प्रकाशित सामग्री हो तो और ही अच्छा, का प्रयोग करना चाहिए और कक्षा में सदा हिंदी का प्रयोग करना चाहिए।
स्टारटॉक की रचना करने वाले अधिकारी इस बात के लिए धन्यवाद के पात्र हैं कि उन्होंने उसमें जुड़ने वालों के लिए न्यूनतम योग्यता की शर्त न रखी। कार्यक्रम का उद्देश्य साफ़ था-अमेरिकी समाज में विभिन्न देशों के समुदाय फल-फूल रहे हैं, उनकी भाषा सिखाने के पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते। स्थानीय स्कूल डिस्ट्रिक्टि गैर अंग्रेजी भाषाओँ के नाम पर फ्रेंच, जर्मन, इटालियन और लैटिन पढ़ाने की परम्परा में बदलाव को इच्छुक नहीं। ऐसी स्थिति में गैर अंग्रेजी समुदाय की चुनी हुई भाषाओँ को विधिवत सिखाने के मार्ग ढूंढें जायँ। जिन जागरूक लोगों को अपनी भाषा के प्रचार-प्रसार की फ़िक्र है, वे आगे आएंगे, उन्हें प्रशिक्षित किया जाय, और अंग्रेजी के इतर हेरिटेज यानी विरासत की भाषाओँ की पढाई के मार्ग प्रशस्त किये जाएँ। इस अभियान में जो कि 2007 से शुरू हुआ था, अनेक विश्वविद्यालयों और स्कूल डिस्ट्रिक्ट के विश्व भाषा विभाग सामने आये। और हिंदी, उर्दू, चीनी-मैंडरिन, अरबी, टर्किश, आदि भाषाओँ के औपचारिक शिक्षण के मार्ग प्रशस्त हुए।
यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया का 2009 स्टारटॉक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम दो सप्ताह का था। उसके समापन के साथ सुरेंद्र गंभीर जी ने मेरे जैसे उत्साही प्रतिभागियों के समक्ष एक प्रस्ताव रखा:
‘हिंदी का प्रचार कार्य कैसे आगे बढ़ेगा? अमेरिका में हिंदी शिक्षण को विधिवत आगे बढ़ाना है तो एक संस्था का गठन करना चाहिए। इसका नाम क्या हो?’
सुरेंद्र जी ने तर्क दिया कि चूँकि हम युवा पीढ़ी को हिंदी सिखाने का बीड़ा उठा रहे हैं, इसका नाम होना चाहिए: युवा हिंदी संस्थान। संस्था के पंजीकरण, समाज में उसका समर्थन वर्ग विस्तृत करने की जिम्मेदारी मेरे कन्धों पर आयी। फ़िलेडैल्फ़िया से न्यू जर्सी लौटने पर मेरे लिए अनेक कार्य प्रतीक्षारत थे जो मुझे आत्म निर्भरता की ओर ले जाने वाले थे । स्वयं सुरेंद्र जी संस्था के सभापति और मैं अध्यक्ष बने और 'युवा हिंदी संस्थान' का बीजारोपण किया। जुलाई से दिसंबर 2009 के दौरान युवा हिंदी संस्था नामक सांस्कृतिक पौधा पनपने लगा, हमने प्रथम स्टारटॉक कार्यक्रम एटलांटा नगर में सुरेंद्र जी के निर्देशन में आयोजित किया। इधर न्यू जर्सी में कीन विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ फराही और भारतीय समुदाय के लोकप्रिय प्रतिनिधि असेंबली मैन उपेंद्र चिवुकूला के सहयोग और समर्थन से हमने विश्वविद्यालय में स्टार टॉक हिंदी स्टूडेंट कार्यक्रम की नींव भी रख दी, जिसका मैं निदेशक बना। 2010 में दो स्टारटॉक कार्यक्रमों की संरचना और संचालन का कार्य करते हुए मेरे जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ जिसमें मुझे शिक्षक, समाज सेवी, ग्रुप लीडर की भूमिका निभाते हुए अनेक उतर चढ़ाव से गुजरना पड़ा। मेरी पत्नी कहा: ‘जो जिम्मेदारी सामने आती है, भगवान का निर्देश मान कर निभारते रहो।’