‘ओपिऑइड: अमेरिका पर घातक नशीली दवाओं का आक्रमण : अशोक ओझा

पोर्टलैंड, ऑरेगोन: 

गुलाब के अनगिनत पौधों से सजे बगीचे, जापानी बाग़, और चीन के पारंपरिक आँगन की खूबसूरती बिखेरते इस शहर में तम्बुओं की कतार और उनपर निगरानी रखने वाली पुलिस की गाड़ियों को देख कर एक ऐसे समाज की तस्वीर सामने आती है जो यह समझ नहीं पा रहा कि घातक नशीले पदार्थों से ग्रस्त युवा पीढ़ी को समाज की मुख्य धारा में समाहित करने के लिए क्या करे?

पोर्टलैंड अमेरिका के अनेक नगरों में से एक है, जहाँ नुक्कड़ों पर, सुनसान पार्क और रेलवे स्टेशनों पर दर्जनों किस्मों के नशीले पदार्थों बेचे और ख़रीदे जाते हैं। पिछले दो दशकों में अमेरिका में नशीले पदार्थों का चलन तेजी से बढ़ा है। मारिजुआना, हेरोइन, फ़ेंटानील और दूकानों पर उपलब्ध दर्द निवारक दवाओं का दुष्प्रभाव दशकों से अमेरिकी समाज पर छाया हुआ है। यहाँ तक कि दस बारह साल की छोटी उम्र से ही स्कूली छात्र-छात्राएं भी उनके प्रभाव में आ चुके हैं। अमेरिका नशीले पदार्थों का एक बड़ा बाजार बन चुका है, जिसमें अरबों डालर के लेन-देन होते हैं, जिसके व्यापारियों में न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय ड्रग कार्टेल और बदमाशों की टुकड़ियां शामिल हैं, बल्कि दर्द निवारण के नाम पर नशीली दवाओं की उत्पादक कम्पनियाँ भी शामिल हैं। इन दवाओं को दक्षिण अमेरिका के ड्रग कार्टेल (तस्कर) कानून के संरक्षकों की नज़रें बचा कर मेक्सिको के रास्ते अमेरिका के कोने कोने में फैलते रहे हैं। शहरों की गरीब बस्तियों के बेरोजगार युवक युवतियां इन नशीले पदार्थों को नशेड़ियों तक पहुंचाते रहे हैं, उनमें से अनेक पुलिस की गिरफ्त में आ कर सलाखों में कैद हो जाते हैं। गली और नुक्कड़ों पर नशीले पदार्थ बेचने वाले बेरोजगार लोगों से जब  अमेरिका के कारागार ठसाठस भर गए तो प्रशासन ने उनमें से अनेकों को, जिन पर विशेष गंभीर मामले दर्ज़ नहीं थे, मुक्त करने का निर्णय लिया। भारी संख्या में युवा पीढ़ी को जेल में बंद देख कर राष्ट्रपति ओबामा भी चिंतित हुए।

उदारवादी राजनेता और राज्य सरकारों ने हलके फुलके गुनहगारों यानी जिनके पास थोड़ी मात्रा में पावडर मिले उन्हें जेल से बाहर किया गया ताकि वे नया जीवन शुरू कर सकें। कुछ राज्यों के उदारवादी प्रशासनों में यह सोच प्रभावी हुई कि नशे की आदत से मौत के करीब जा रही युवा पीढ़ी न सिर्फ शहरों और प्रदेशों के प्रबंधन पर, उनकी स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ हैं, वरन, उनकी गिरफ़्तारी से नशीले पदार्थों का काला बाजार काम नहीं हो रहा। इस कारण कुछ राज्यों ने मारिजुआना जैसे कम हानिकारक पदार्थों का मनोविनोद के लिए सेवन (रेक्रिएशनल) वैध करार दिया। दूसरी तरफ अनेक दवाएं डॉक्टरों के लिखने पर फार्मेसी में मिलने लगीं। लेकिन नशेड़ियों ने उनका ज़रुरत से ज्यादा सेवन (ओवरडोज़) करना शुरू किया। नतीजा यह हुआ कि न तो नशेड़ियों की संख्या काम हुई न ही नशीले पदार्थों का काला बाजार ही बंद हुआ।

धीरे धीरे अमेरिका के अनेक प्रदेशों में नशीले पदार्थों को पहले तो दर्द निवारण के नाम पर बाद में 'रिक्रिएशन' के नाम पर वैध कर दिया गया। आज कई राज्यों में मारिजुआना की खेती कानूनी तौर पर की जा सकती है। उन राज्यों की सरकारों ने सोचा था कि नशीले पदार्थों का सेवन वैध करने से उनका अंडर ग्राउंड व्यापर बंद हो जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उल्टे पहले से भी ज्यादा प्रभावकारी द्रव्य बाज़ार में आ गए। 

दक्षिण अमेरिकी देशों में उत्पादित होने वाले द्रव्य मेक्सिको के रास्ते एरिज़ोना, टेक्सास और कैलिफ़ोर्निया के वीरान सीमावर्ती क्षेत्रों से होकर अमेरिका के शहरों में बेचे जाते हैं, जिन्हें रोकने के पुलिस प्रयास सफल नहीं हुए। एक से एक ताकतवर पदार्थों का सेवन करने वाले लोग बढ़ते ही जा रहे हैं, यहाँ तक कि अल्प व्यस्क युवा पीढ़ी एक दो बार इनका स्वाद चखने के बाद स्थायी तौर पर नशेड़ी बन जाते हैं, जिनमें से अनेक नशा करते करते अपना स्वास्थ्य और एक दिन अपनी ज़िन्दगी से हाथ धो बैठते हैं, अपने माता पिता को रोते-विलखते छोड़ कर! अलास्का, कोलराडो, ओरेगन, वॉशिंगटन में सन 2014 में मनोविनोद (रेक्रीशनल) गतिविधियों के लिए मादक द्रव्यों को कानूनी मान्यता दी गयी। नतीजा: नशीले द्रव्यों से उपजे हिंसक वारदातों के फलस्वरूप पांच लाख जाने जा चुकी हैं। जिन प्रदेशों में नशीले पदार्थ लेने की कानूनी छूट है वहां इसे चॉकलेट और बिस्कुट में मिला कर बेचा जाने लगा है। सरकारी द्रव्य निरोधक एजेंसियां उन लोगों को पकड़ने की कोशिश में दिन रात लगी हैं, जो गैर कानूनी दवाओं को अमेरिकी बाज़ार में पिछले दरवाजे से भेजते हैं। इनमें चीन के व्यापारी भी शामिल हैं जो फ़ेंटानील नामक घातक नशीली दवा चीन से तस्करी के रास्ते अमेरिका भेज रहे हैं। कहते हैं अमेरिका में 'ओपिऑइड' की लत महामारी का रूप ले चुकी है, जिसमें फ़ेंटानील की बड़ी भूमिका है।

अफीम से उत्पादित दवा 'हेरोइन' और भी घातक है जिसका सेवन पिछले पांच वर्षों में तेज़ी से बढ़ा है। मेक्सिको में जहाँ अफीम से हेरोइन बनाई जाती है, हेरोइन को फ़ेंटालीन से मिश्रित कर उसे अत्यंत असरदार बनाया जाता है ताकि उसके सेवन की आदत जल्दी बढ़ जाती है। 

मारिजुआना यानी गांजा एक मादक द्रव्य नहीं, बल्कि दर्द निवारण दवा के रूप में प्रचलित रहा है। शोध कार्यों से पता चला कि पिछले दशकों में इसका सेवन करने वाले अधिक ताकतवर नशीले पदार्थों का सेवन करने लगे। आज पहले से कहीं 25 गुना ताकतवर मारिजुआना की बिक्री दवा के रूप में होती है।

नशीले पदार्थ नशेड़ियों को मौत के निकट लेजाने का कार्य करते हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि  सन 2016 में प्रति दिन 174 नशीले पदार्थों के अत्यधिक (ओवर डोज़) सेवन से मौत के शिकार हुए। सन 2017 में ओपिऑइड लगभग 30 हज़ार मौतों का कारण बनी, मैक्सिको में उसका उत्पादन पहले से 37 प्रतिशत बढ़ा। ऑरेगोन में बाजार में उपलब्ध कुल मारिजुआना का 30 प्रतिशत कानूनी तौर पर तैयार होता है।  सन 2013 से 2016 के दौरान फ़ेंटानील मिलावटी हेरोइन यानी अत्यधिक जहरीले पदार्थ के सेवन से मरने वालों की संख्या दुगुनी हो गयी। मिलावटी पदार्थों की बिक्री मेक्सिको के ड्रग कार्टेल मुख्यतः इन दवाओं का अवैध व्यापार करते हैं। 'ओपिऑइड' की महामारी अमेरिकी समाज को तबाह कर रही है।  

पिछली शताब्दी के छठे और सातवें दशक में अमरीकी युवक-युवतियों ने ​समस्त विश्व को सामाजिक क्रांति का सन्देश दिया था। इस क्रांति के मुख्य मुद्दे थे युद्ध-विरोध और यौन स्वतंत्रता। उन दिनों की क्रांतिकारी युवा पीढ़ी ने बैक पैकिंग अभियान को भी लोकप्रिय बनाया था-पीठ पर एक भरी भरकम थैले में युवक युवतियां निकल पड़ते थे जंगलों, पहाड़ों और समुद्र तटों की तरफ शांति की खोज में।इस पीढ़ी के जीवन दर्शन को हिप्पी संस्कृति के रूप में जाना-पहचाना जाता हैं। इस संस्कृति के जीवन में उन्मुक्तता और स्वतंत्रता का एहसास सर्वोपरि था जिसके लिए वे नशीले पदार्थों का सेवन करते थे। मारीयुवाना, हेरोइन जैसे पदार्थ उन्हीं दिनों व्यवस्था विरोध के प्रतीक बने थे। 

आठवें और नब्बे के दशकों में हिप्पी जीवन शैली का प्रभाव समाप्त होने लगा, युवा हिप्पी समुदाय जीवन के उत्तरार्द्ध में प्रवेश करने लगा। लेकिन आधुनिक युवा पीढ़ी की जीवन शैली में नशीले पदार्थों का प्रयोग अपनी जड़ें ज़माने लगा। हिप्पी लोग गांजा और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन चिंता और तनाव मुक्त होने के लिए करते थे, उन पदार्थों का असर कई गुना तेज कर बेचा जाने लगा। क्लबों, संगीत कार्यक्रमों, पार्टियों में नशीले द्रव्यों का सेवन सामान्य बात हो गयी, नशेड़ियों की संख्या बढ़ने लगी, उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए न सिर्फ दक्षिणी अमेरिका के देशों से नए नए असरकारक द्रव्यों की तस्करी में वृद्धि हुई, वरन अनेक दवा उत्पादकों ने दर्द निवारण नशीले पदार्थों की बिक्री शुरू की जिनमें से कुछ ऐसी हैं कि उनका दो तीन बार सेवन करने से उनके सेवन की लत पड़ जाए। 

अमेरिका का जस्टिस विभाग अंतर्राष्टीय आपराधिक तस्करों को पकड़ने और उन्हें काबू में करने के लिए अनेक देशों की सरकारों के साथ कार्य कर रहा है। दूसरी तरफ कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह अदालत में तम्बाकू को कैंसर का जनक साबित कर सिगरेट उत्पादकों से भारी रकम वसूल कर कैंसर रिसर्च में लगाया गया, उसी तरह 'ओपिऑइड' को नशेड़ियों को मौतों का कारण साबित कर 'ओपिऑइड उत्पादकों' को आर्थिक तौर पर दण्डित किया जाना चाहिए।

Ashok OjhaComment