हिंदी शिक्षार्थियों को क्या चाहिए? भाग 2
अशोक ओझा
भाषा ज्ञान का आकलन
भाषा शिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षार्थी कितना सीख रहे हैं, इसकी जांच कैसे हो? 'अमेरिकन कौंसिल ऑन टीचिंग फॉरेन लैंग्वेजेज' द्वारा जो पैमाना विकसित किया गया है, उसकी सहायता से हम पता कर सकते हैं कि विभिन्न स्तरों के विद्यार्थी क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते? इसे पाठ-लक्ष्य (लेसन गोल) भी कह लीजिए। क्यों कि हम किसी विषय को पढ़ाते समय उसे अध्याय ( टॉपिक) और पाठ में विभाजित करते हैं, और पाठ, विषय, या मुख्य विषय (थीम) तक का सफर तय करते हुए, तीनों स्तरों पर शिक्षार्थी ने क्या सीखा, यानी वह क्या कर सकता है (कैन-डू), उसका आकलन करते जाते हैं। हम जानते हैं कि भाषा शिक्षण सुनने, बोलने, पढ़ने और लिखने द्वारा पूरा किया जा सकता है। आइए देखें कि भाषा शिक्षक को, इन चारों प्रकार की शिक्षा देते समय किन पैमानों का ध्यान रखना चाहिए कि जिससे पता चले प्रारंभिक (नोविस), और माध्यमिक (इंटरमीडिएट) स्तरों के शिक्षार्थियों से क्या अपेक्षाएं की जानी चाहिए। इस लेख में हम अग्रिम (एडवांस) स्तर के शिक्षार्थी की बात इसलिए नहीं करना चाहते कि हमारे विद्यार्थी, मुख्यतः प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च विद्यालयों के विद्यार्थी हैं, जो हिंदी सीख रहे हैं, वे भारत के बाहर पैदा हुए, बड़े हो रहे हैं, और दैनिक बोलचाल में हिंदी का प्रयोग न के बराबर करते हैं।
भाषा प्रवीणता
सुनना( लिसनिंग): प्रारंभिक स्तर के शिक्षार्थी, जो कि मुख्यतः प्राथमिक विद्यालय के कक्षा एक से लेकर पांच तक के विद्यार्थी हो सकते हैं, अपने भाषा शिक्षक द्वारा पढ़ाये जाने वाले पाठ या विषय में से मुख्य शब्द, संभवतः अक्सर प्रयुक्त किये जाने वाले मौलिक संदेशों, परिचयात्मक सम्बोधनों, साधारण प्रश्नों में प्रयुक्त शब्दों और मुहावरों को समझ सकते हैं। उदहारण के लिए आपका क्या नाम है? आप कहाँ रहते हैं? कहाँ जा रहे हैं? जैसे प्रश्नों को उनसे पूछना और उनका सही परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रस्तुत करना सिखाना होना चाहिए। नमस्ते जी, आप कैसे हैं? ठीक है, धन्यवाद, फिर मिलेंगे, आपसे मिल कर ख़ुशी हुई/बहुत ख़ुशी हुई आदि आम प्रयोग में आने वाली बुनियादी बातों को ही प्रारंभिक स्तर के शिक्षार्थी समझ सकते हैं। इन बुनियादी समझ को सिखाने के लिए शिक्षक बार बार अपनी बात दुहराए, भाषा के अतिरिक्त हाव-भाव, चित्र, रेखा चित्र, अभिनय आदि का सहारा लेते हैं।
प्रारंभिक स्तर के शिक्षार्थी गीत-संगीत, चित्र परिचय, पारिवारिक सदस्यों की पहचान सम्बन्धी बातें जो अपने शिक्षक से सुनते या उन्हें करते हुए देखते हैं, उसी का अनुसरण करते हैं। उनसे अपेक्षा की जाती है कि शब्द ज्ञान से लेकर अत्यंत सामान्य वाक्यों का प्रयोग करना सीख जायँ। 'मेरा नाम ---है', मैं ---रहता/रहती हूँ' जैसे वाक्य प्रारंभिक शिक्षार्थी का पाठ लक्ष्य होना चाहिए।
माध्यमिक स्तर के शिक्षार्थी सामान्यतः पांचवी कक्षा से ऊपर वाले विद्यार्थी होते हैं, उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे पाठ की मूल भावना काफी हद तक समझ लें। उनके शिक्षक सामान्य शब्दों और वाक्यों का प्रयाग कर जाने-पहचाने पाठ और विषयों पर
श्रृंखला बद्ध वाक्यों का प्रयोग करते हैं और उम्मीद करते हैं कि शिक्षार्थी अपनी समझ के मुताबिक नए शब्द और वाक्यों का प्रयोग करते हुए पढ़ाये गए पाठ या विषय का सारांश या उसके पात्रों की जानकारी समझ सकें ।
बोलना: भाषा शिक्षण के दौरान सुन कर या देख कर सीखी गयी शब्दावली और वाक्य रचना को प्रारंभिक स्तर के विद्यार्थी दुहराते हैं। वे अक्सर अपने मूल भाषा के शब्दों, वाक्यांशों का प्रयोग कर लेते हैं जो कि सुनने वाले की समझ में नहीं आते। उनके टूटे फूटे वाक्यों को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी शिक्षक की होती है।
दूसरी तरफ माध्यमिक स्तर के विद्यार्थी सुनी सुनाई भाषा के शब्दों और वाक्यांशों में अपनी समझ के अनुसार नए अर्थपूर्ण शब्द भी जोड़ते हैं, जो कि सुनने वालों की समझ में आ जाएँ। ये विद्यार्थी बोलने में शब्द और वाक्यों की अर्थपूर्ण श्रंखला प्रस्तुत करते हैं।
उदहारण के लिए 'यात्रा' विषयक विवरण देते हुए वे किसी स्थान का भूगोल, वहां की खास बातें और खाने-पीने के बारे में अपनी समझ के मुताबिक अनेक वाक्यों को बोल कर प्रस्तुति दे सकते हैं। यह आवश्यक है उन्हें उनके विषय उनकी भाषा क्षमता के अनुरूप सिखाएं जायँ।
पढ़ना-लिखना: साक्षारता के इन दोनों विधाओं का सम्बन्ध भाषा वर्णमाला से है। हिंदी सीखने के लिए देवनागरी वर्णमाला का ज्ञान आवश्यक है। बिना वर्णमाला सीखे शिक्षार्थी उन शब्दों और वाक्यों को पहचान नहीं सकता, लिख नहीं सकता। पढ़ना और लिखना दोनों ही जटिल और धीमी प्रक्रिया है, इसलिए हमारे कार्यक्रमों के विद्यार्थियों को घर पर वर्णमाला पढ़ने और लिखने का अभ्यास करने के लिए कहा जाता है। हालां कि कंप्यूटर पर ऐसे ऑनलाइन टूल उपलब्ध हैं, जिनसे अक्षर, शब्द, मात्रा, और वाक्यों को लिखना सिखाया जा सकता है।
प्रारंभिक और माध्यमिक दोनों स्तरों के शिक्षार्थियों के लिए आवश्यक है कि हम उन्हें भाषा की संरचना समझने में मदद करें। अक्षर, शब्द और वाक्य रचना समझने और पहचानने का अवसर दें, यह ध्यान रखें कि शिक्षक सीमित शब्दों, वाक्यों को कक्षा में प्रयोग करें, और पढ़ाने के दौरान यह आकलन करते जायँ कि उनके विद्यार्थी सुने हुए शब्दों और वाक्यों को समझ रहे हैं, पहचान रहे है, उन्हें बोल और लिख पा रहे हैं।
भाषा शिक्षार्थियों की प्रवीणता प्रारंभिक से माध्यमिक और उसके आगे अग्रिम और श्रेष्ठ पायदानों पर ले जाने का पैमाना है यह जान लेना कि वे 'क्या कर सकते हैं। ' वर्षों पहले जब मैंने ‘अमेरिकन कौंसिल ऑन द टीचिंग ऑफ़ फ़ॉरेन लैंग्वेजेज' द्वारा विभिन्न स्तरों के लिए विकसित 'क्या कर सकते हैं' की सूची पर नज़र डाली तो महसूस हुआ कि इन पैमानों का प्रयोग एक तरफ शिक्षक अपने विद्यार्थियों की प्रवीणता जांचने के लिए कर सकते हैं तो दूसरी तरफ शिक्षार्थी भी स्वयं अपनी भाषा क्षमता की समीक्षा कर सकते हैं कि उन्होंने कितना और क्या सीखा। यही नहीं, 'क्या कर सकते हैं' पैमाने शिक्षार्थी को आत्म विश्वास बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का कार्य करते हैं। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि 'क्या कर सकते हैं' भाषा शिक्षण के लिए वास्तविक पैमाना प्रस्तुत करने के साथ साथ विविध विषयों की शिक्षा का लक्ष्य निर्धारण में भी उपयोगी साबित होते हैं। कक्षा में शिक्षार्थी 'क्या कर सकते हैं', इसकी जांच,यानी इंटरप्रेटिव, परस्पर (इंटरपर्सनल) संवाद, और प्रस्तुतीकरण के तीन अंदाज़ में उनकी कार्य क्षमता (पर्फ़ोर्मन्स) का आकलन, उनके कार्यों से परिलक्षित होता है। तीनों संवाद-अंदाज़ में शिक्षार्थियों की कार्य क्षमता जांचने के लिए संकेतक बनाने की जिम्मेदारी भी शिक्षक की है, जिसे प्रत्येक विद्यार्थी की क्षमता का अनुमान है, उस क्षमता को सुदृढ़ करना ही भाषा शिक्षण के लक्ष्य को प्राप्त करना है, यानी विषय के अनुसार शिक्षार्थी के सुनने, बोलने, पढ़ने और लिखने की प्रवीणता को समृद्ध करना है। यहाँ एक उदाहरण के साथ हम विषय-वस्तु (थीम), विषय (टॉपिक) या यूनिट और पाठ (लेसन) के अंतर्गत पढ़ाये जाने वाले लक्ष्यों का सही संकेतक निर्धारित कर सकते हैं:
मान लीजिए हम प्रारंभिक स्तर के शिक्षार्थी को 'मेरा घर' नामक विषय पढ़ा रहे हैं, जो कि 'मेरा संसार' नामक व्यापक विषय (थीम) के तहत एक उप विषय है। इस विषय को कई पाठ में विभाजित करते समय शिक्षक पहले तो इंटरप्रेटिव (परिचयात्मक/व्याख्यात्मक) अंदाज़ में संकेतक लक्ष्य निर्धारित कर सकता है। प्रारंभिक विद्यार्थी को निम्न, मध्य और उच्च श्रेणी की सीढ़ियों तक ले जाने के लिए ज़रूरी है कि विद्यार्थी के सामने उच्च श्रेणी का ही संकेतक लक्ष्य रखा जाय, यानी उसे विविध वाक्य संरचना से परिचित कराते हुए उसे प्रारंभिक उच्च सीढ़ी तक ले जाने का प्रयास करना होगा।
इस प्रकार इंटरप्रेटिव (व्याख्यात्मक) अंदाज़ में हमारा लक्ष्य होगा विद्यार्थी विषय अनुरूप साधारण प्रश्न समझ सकता है। इसका विषय अनुरूप उदाहरण होगा 'अपने घर' सम्बन्धी साधारण प्रश्न समझना । इस उदहारण को सन्दर्भ देते हुए हमारा लक्ष्य हो सकता है: जब दो व्यक्ति 'अपने घर' के बारे में बात कर रहे हों, तो मैं उन्हें समझ सकता हूँ।
परस्पर (इंटरपर्सनल) संवाद अंदाज़ में हमारा लक्ष्य होगा- कुछ सामान्य प्रश्नों को पूछ सकता हूँ, या वैसे ही प्रश्नों के उत्तर दे सकता हूँ। इसका विषय अनुरूप उदाहरण होगा 'अपने घर' के सम्बन्ध में कुछ सामान्य प्रश्नों को पूछ सकता हूँ, या वैसे ही प्रश्नों के उत्तर दे सकता हूँ। इस उदहारण को सन्दर्भ देते हुए हमारा लक्ष्य हो सकता है: 'अपने घर' के बारे में कुछ सामान्य बातें, जैसे उसका आकार, उसके खिड़की, दरवाज़े आदि के बारे में बता सकता हूँ, और पूछ सकता हूँ।
प्रस्तुतीकरण (प्रेज़न्टेशनल) अंदाज़ में हमारा लक्ष्य होगा कि विद्यार्थी सीमित शब्दों और कभी कभी पूर्ण वाक्यों का प्रयोग कर 'अपने घर' के बारे में कुछ सामान्य बातें बोल कर या लिख कर बता सकता है।
दरअसल, शिक्षक की जिम्मेदारी यह भी है कि वह अपने शिक्षार्थियों को क्यों, क्या, कैसे, और कहाँ जैसे प्रश्नों के सहारे भाषा विस्तार के अनेक पहलुओं पर शिक्षार्थिओं को सोचने और अपने भाषा ज्ञान बढ़ने का अवसर दे।
लक्ष्य-संकेतक को माध्यमिक स्तर तक बढ़ने के लिए शिक्षक श्रृंखलाबद्ध वाक्यों को लक्ष्य संकेतक में शामिल कर सकता है। प्रारंभिक की तरह ही माध्यमिक संवाद स्तर में तीन सीढ़ियों, निम्न, मध्य और उच्च श्रेणियों को पार करना ज़रूरी है। माध्यमिक स्तर की सीढ़ियों को पार करने के लिए भी पैमाने तैयार हैं जिन्हें शिक्षक अपने विद्यार्थियों की भाषा ज़रूरतों के अनुरूप अपना सकते हैं। भाषा शिक्षण एक रचनात्मक प्रक्रिया है जिसे गढ़ने के लिए संकेतक और अन्य पैमाने सिले हुए वस्त्र की तरह प्रयोग में लाए जा सकते हैं।
इस लेख से सम्बंधित मौलिक दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के लिए यहाँ जाएँ:
World Readiness Standards for Learning Languages:
https://www.actfl.org/resources/world-readiness-standards-learning-languages
NCSSFL-ACTFL Can-Do Statements:
https://www.actfl.org/resources/ncssfl-actfl-can-do-statements