क्या ट्रम्प दुबारा राष्ट्रपति बनेंगे?
इन दिनों अमेरिकावासियों को ट्रम्प प्रशासन यानी केंद्रीय सरकार की तरफ़ से राहत राशि के चेक भेजे जा रहे हैं। सरकारी ख़ज़ाने से जारी किए जाने वाले चेक पर डॉनल्ड ट्रम्प का नाम है, हालाँ कि कोरोना वायरस के कारण लोगों की बदहाल आर्थिक स्थिति और बदतर व्यापार जगत को राहत देने के लिए 2.2 ट्रिलीयन डॉलर की सहायता राशि अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों की स्वीकृति के बाद ही राष्ट्रपति के पास उनके हस्ताक्षर के लिए भेजी गई थी। लेकिंन चूँकि अमरीकी राष्ट्रपति यहाँ के कार्यकारी अंग का प्रमुख होता है, इसलिए उसकी ज़िम्मेदारी लोगों तक सहायता राशि भेजने की होती है। ट्रम्प ने इस अवसर का राजनीतिक लाभ उठाते हुए चेक पर अपना नाम छपवाया, ताकि लोगों को लगे कि उन्हें ट्रम्प ने ही पैसा भेजा है। हो सकता है कि ट्रम्प अमेरिकी मतदाताओं को बताना चाहते हैं कि आर्थिक संकट की इस घड़ी में उनका मददगार यदि कोई है तो वह है ट्रम्प!
अमेरिका में 2020 का वर्ष राष्ट्रपति चुनाव का वर्ष है। ट्रम्प दूसरी बार चुनाव लड़ने के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार भी रहेंगे। इधर अमेरिका की दूसरी बड़ी पार्टी डेमोक्रेटिक के उम्मीदवार जो बाइडन हैं । ट्रम्प और बाइडन में ज़ोरदार मुक़ाबला होने वाला है । नवम्बर माह में अमेरिकी मतदाता अपना अगला राष्ट्रपति चुनेंगे। ट्रम्प और बाइडन के अपने अपने समर्थक वर्ग हैं, जो उनके गुण-अवगुण का आकलन करते हुए वोट डालेगा। लेकिन कोरोना के प्रकोप ने अमेरिका का राजनीतिक समीकरण अस्त व्यस्त कर दिया है, और चुनाव को लेकर अनेक मुद्दे मुँह बाए खड़े हैं।
अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनैतिक पार्टियों, रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, के निकट भविष्य में होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलनों में उम्मीदवारों की विधिवत घोषणा की जाएगी। रिपब्लिकन पार्टी जिसका बहुमत अमेरिकी सीनेट में है, डोनाल्ड ट्रम्प को अपना उम्मीदवार घोषित करेगी, उनके साथी उपराष्ट्रपति पेंस तो हैं ही ।डेमोक्रेटिक पार्टीके सम्मेलन में जो बाइडेन को उम्मीदवार घोषित किया जाएगा। बाइडेन ओबामा के शासन काल में उपराष्ट्रपति रह चुके हैं और पिछले एक वर्ष के दौरान विभिन्न प्रदेशों में हुए डेमोक्रैट कॉकस चुनावों में सर्वाधिक लोकप्रिय उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं। कहा जाता है कि उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में वे किसी महिला को अपना साथी चुनेगें और इस सम्बन्ध में कैलिफ़ोर्निया की पूर्व एटॉर्नी जनरल कमला हैरिस का नाम लिया जा रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति उम्मीदवार, जो कम से कम 35 वर्ष का, अमेरिका में पैदा हुआ व्यक्ति ही हो सकता है । उम्मीदवारों को राजनीतिक पार्टियों के नामांकन के लिए देश भर में चुनाव प्रचार करना पड़ता है । उनकी पार्टी के सदस्य, अपने प्रदेश कॉकस में चहेते उम्मीदवार को वोट देते हैं। हर राजनीतिक दल विभिन्न प्रदेशों में प्राथमिक (प्राइमरी) चुनावों के दौरान अपने अपने उम्मीदवारों का चुनाव करता है, जिसके बाद उनका राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जाता है, जहाँ उनके राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा की जाती है। इन्हीं सम्मेलनों में इन उम्मीदवारों के साथी उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भी घोषित किये जाते हैं।
नवम्बर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता दरअसल उन 'एलेक्टर्स' को चुनेगें जो अंततः ‘एलेक्टोरल कॉलेज’ का निर्माण करते हैं। एलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों की कुल संख्या हाउस ऑफ़ कांग्रेस के प्रतिनिध (हाउस ऑफ़ रेप्रेजेंटेटिवस) और सीनेट सदस्यों की कुल संख्या के बराबर यानी 538 होती है। राष्ट्रपति के आम चुनाव के बाद प्रत्येक एलेक्टर अपने चहेते राष्ट्रपति उम्मीदवार के पक्ष में एक वोट डालता है। इस प्रकार जिस उम्मीदवार को 270 या उससे अधिक वोट मिलते हैं, राष्ट्रपति वही होता है। ट्रम्प और बाइडन-इनमें से कौन चुन कर आएगा? क्या ट्रम्प को दूसरी बार मौक़ा मिलेगा या ट्रम्प के काम करने के तरीक़ों से नाख़ुश अमेरिकी नागरिक अब बाइडन को चुनेंगे? कोरोना महाप्रकोप ने इस प्रश्न को कठिन बना दिया है ।
वर्तमान अमेरिकी अर्थ व्यवस्था कोरोना की चपेट में है। 30 मिलियन से ज्यादा लोग बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन कर चुके हैं। देश भर में लॉक डाउन धीरे धीरे खोला जा रहा है, लेकिन विलुप्त नौकरियों को पुनः बहाल करना मुश्किल है, कम से कम राष्ट्रपति चुनाव तक तो और भी मुश्किल! नवम्बर तक अमेरिकी लोगों की आर्थिक हालत यूँ ही बिगड़ती रही, और अमेरिका आर्थिक मंदी की तरफ बढ़ता रहा तो उसका असर राष्ट्रपति चुनाव पर निश्चित रूप से पड़ेगा और लोग अपने हालात के लिए ट्रम्प को जिम्मेदार मानते हुए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार बाइडेन के पक्ष में वोट डाल सकते हैं। हालां कि अमेरिका की संभावित मंदी ट्रम्प के कारण नहीं, कोरोना के कारण ही होगी, इस तथ्य से परिचित होने के बावजूद लोग ट्रम्प पर अपना गुस्सा उतर सकते हैं। क्यों कि सामान्य तौर पर यह स्वीकार किया जाता है कि कोरोना को नियंत्रित करने में ट्रम्प ने उतनी तत्परता नहीं दिखाई जितनी दिखानी चाहिए थी।ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति चुनाव का पलड़ा बाइडन के पक्ष में जा सकता है।
दूसरी तरफ, ट्रम्प का जानाधार, रिपब्लिकन पार्टी को प्राप्त जन समर्थन, भी काफी मजबूत है। अमेरिकी जन प्रतिनिधियों की सभा यानी कांग्रेस के निचले सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है, लेकिन ऊपरी सदन, सीनेट में जहाँ हर प्रदेश से दो प्रतिनिधि चुन कर जाते हैं, रिपब्लिकन बहुमत होने के कारण ही ट्रम्प के विरुद्ध महाभियोग बुरी तरह पराजित हुआ। नतीजा यह हुआ कि ट्रम्प के समर्थकों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ। आज महाभियोग की चर्चा तक नहीं होती। ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति चुनाव में ‘महाभियोग’ कोई मुद्दा नहीं होगा, और लोग इसे पूरी तरह भूल चुके होंगे।
ऐतिहासिक तौर पर कुछ व्यावहारिक तथ्य ऐसे हैं जो राष्ट्रपति चुनाव में पलड़ा इधर से उधर कर सकते हैं। ये तथ्य हैं ‘स्विंग’ प्रदेशों का मूड जिन पर चुनाव परिणाम काफ़ी हद तक निर्भर करते हैं। इन प्रदशों में जो उम्मीदवार ज़्यादा लोकप्रियता हासिल कर ले, माना जाता है कि जीत उसी की होगी। इन राज्यों में रिपब्लिकन और डेमोक्रैट उम्मीदवार मतदाताओं को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं । दूसरे शब्दों में इन राज्यों के मत राजनीतिक दलों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इन राज्यों में एरिज़ोना, कोलोराडो, मेन,मिशिगन, मिंनीसोटा, नेवाडा, न्यू हेम्पशर, नार्थ कैरोलाइना, पेनसिलवेनिया, और विस्कॉन्सिन शामिल हैं। इन राज्यों में जिस पार्टीउम्मीदवार को बहुमत प्राप्त होगा उसका सीधा असर राष्ट्रपति के निर्वाचन पर होगा, इसीलिए पार्टी उम्मीदवार इन राज्यों में बहुमत पाने के लिए एड़ी चोटी पा पसीना एक कर देते हैं। इस बार भी इन राज्यों में जिस उम्मीदवार की जीत होती, अंततः उनका पलड़ा भारी होगा।
एक अन्य मुद्दा है जिस पर राष्ट्रपति चुनाव के पूर्व एकमत क़ायम होना ज़रूरी है। यह मुद्दा है डाक से वोट डालने का! अनेक प्रदेशों में प्राइमरी चुनाव में ‘वोट बाई मेल’ यानी डाक से मत डाले गए। डेमोक्रेट इसका समर्थन करते हैं, जब कि रिपब्लिकन नेताओं का कहना है कि ‘डाक से वोट’ डालने से जाली मतदान का ख़तरा है। दोनों पार्टियाँ ‘वोट बाई मेल’ को अपनी जीत-हार से जोड़ कर देख रहीं हैं, लेकिन उनके एकमत हुए बिना पूरे देश में यह सिस्टम कैसे लागू होगा, इस पर शीघ्र निर्णय होना ज़रूरी है। हालाँ कि पाँच राज्यों, ओरेगन, वाशिंगटन, ऊटा, कोलोराडो और हवाई में ‘डाक से वोट’ डालने का सिलसिला लागू भी हो गया है।
अब से लेकर अक्टूबर तक के पाँच महीने राष्ट्रपति चुनाव के लिए अत्यंत समवेदनशील हैं, इस अवधि में राजनीतिक हालात कैसा मोड़ लेते हैं, , यह देखना दिलचस्प होगा।