फुलब्राइट अध्ययन दौरा 2022-रिपोर्ट
अमेरिका में शिक्षक, भारत में शिक्षार्थी
-अशोक ओझा
अक्टूबर और नवंबर 2022 के महीनों में, 12 अमेरिकी शिक्षकों और ‘छात्र -शिक्षकों’-विश्विद्यालयों में शिक्षा पा रहे वे विद्यार्थी जो शिक्षक पेशा में जाना चाहते हैं-की एक टीम एक माह के लिए भारत के अध्ययन दौरे पर आयी। इस दौरे को अमेरिकी शिक्षा विभाग द्वारा 'फुलब्राइट-हेज़ जीपीए शॉर्ट-टर्म/पाठ्यक्रम निर्माण परियोजना 2022' के तहत प्रायोजित किया गया था । परियोजना सलाहकार प्रोफेसर गैब्रिएला निक इलेवा (न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी) मेरे नेतृत्व में यह दल भारत आया । दौरे का उद्देश्य अमेरिका के शिक्षकों और छात्र-शिक्षकों को भारत में विभिन्न स्थानों पर भूमंडलीय ऊष्मा (ग्लोबल वार्मिंग) और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों तथा उससे उत्पन्न वास्तविकतओं से परिचित कराना था। प्रतिभागियों को भारत के सांस्कृतिक संदर्भ में 'जलवायु परिवर्तन' के प्रभाव को देखने और स्थानीय समुदायों की 'टिकाऊ' (sustainalbe) जीवन शैली से अवगत होने की आवश्यकता थी। हमें हिंदी भाषा की मूल संस्कृति में प्रामाणिक सामग्री एकत्र करने की भी आवश्यकता थी। अध्ययन यात्रा ने प्रामाणिक सामग्री प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बाद में भाषा कक्षा में इसका उपयोग करने के लिए पाठ्यक्रम निर्माण का आधार तैयार किया ।
28 अक्टूबर, 2022 को नेवार्क, न्यू जर्सी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर नई दिल्ली के लिए यूनाइटेड एयरलाइंस की उड़ान से सवारी कर हमारा दल अगले दिन 29 अक्टूबर, 2022 को नई दिल्ली पहुंचा । चार हफ्तों के लिए हमने भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की जो जलवायु परिवर्तन से गहराई से प्रभावित हैं। सबसे पहले, हमने उत्तरी राज्य उत्तराखंड के एक हिल स्टेशन नैनीताल की यात्रा की। हमें कुमाऊं विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। विशेषज्ञ एवं कार्यकर्ता अजय रावत ने क्षेत्र में भू-क्षरण एवं जल प्रदूषण की समस्याओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की। हमने बलिया नाला नामक एक क्षेत्र का दौरा किया, जहां हमने भूस्खलन से होने वाली तबाही देखी।हमने देखा स्थानीय आबादी भूस्खलन के डर के साथ जी रही है। भूस्खलन के कारण इलाके से गुजरने वाली एक सड़क पूरी तरह से कट गई है । हम उन कार्यकर्ताओं से मिले जो जल प्रदूषण और जलवायु के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए काम कर रहे थे। हमने आसपास के गांवों का दौरा किया और स्थानीय मुद्दों पर ग्रामीणों से मुलाकात की।
हम नैनीताल से जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय वन क्षेत्र और फिर उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून के लिए रवाना हुए। हमने जंगल के अंदर यात्रा करने के लिए सफारी जीप किराए पर ली और वन्यजीवों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखा। हमने देहरादून की अपनी यात्रा जारी रखी, जहां हमने प्रसिद्ध पर्यावरणविद् वंदना शिवा द्वारा स्थापित एक कृषि फ़ार्म ‘नवधान्य’ परिसर में डेरा डाला । फ़ार्म के कर्मचारी वंदना जी के बताए मार्ग पर चलते हुए जैविक खेती करते हैं और अपने जीवन को रासायनिक पदार्थों से युक्त खाद्य सामग्री से बचा कर रख रहे हैं । हमने कम्पोस्ट खाद का उपयोग करके कृषि फसलों के उत्पादन गतिविधियों को देखना जैसे कि बचपन के दिनों की याद दिलाती थी जब हम रोपनी से पहले खेतों में घूरे आदि घरेलू खाद बैलगाड़ी में भर कर ले जाते थे। डॉ. शिवा ने जैविक खेती और एक साधारण जीवन शैली के साथ संभव टिकाऊ जीवन के लाभों पर व्याख्यान दिया और प्रदर्शित किया। टिकाऊ जीवन पर व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने के लिए हमारे प्रतिभागियों ने स्थानीय किसानों और ग्रामीणों के साथ औडियो ओर विडियो साक्षात्कार किए। ये साक्षात्कार विडीओ फ़ोर्मेट पर रेकर्ड किए गए, जिन्हें पाठ्य क्रम सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।
नैनीताल और देहरादून में लगभग एक पखवाड़ा बिताने के बाद हमारे दल ने मुंबई के लिए उड़ान भरी और विमान स्थल से हम सब सड़क मार्ग से डहाणू पहुंचे, जो एक तटीय शहर है । डहाणू से क़रीब 10 मिल की परिधि में बसे हैं वे गाँव जहां वार्ली आदिवासी समुदाय अपनी झोपड़ियों में आत्मनिर्भर जीवन जीते हैं। वे झोपड़ियाँ बनाने, मछली पकड़ने और विश्व प्रसिद्ध वार्ली पेंटिंग बनाने के लिए स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हैं। हम टिकाऊ (सस्टेनेबल) जीवन के बारे में अपने ज्ञान और समझ को बढ़ाना चाहते थे। वार्ली समुदाय के लोगों से मिलकर उनका रहन सहन क़रीब से देखना अभिनव अनुभव था। रखते हैं। हम 'टिकाऊ (सस्टेनेबल) जीवन शैली के बारे में और वार्ली कलाकारों द्वारा उनके चित्रों में जीवन के चित्रण के बारे में जानकारी हासिल की । फुलब्राइट दल के सभी सदस्य अनुभवी वार्ली कलाकारों द्वारा आयोजित कला कार्यशालाओं में शामिल हुए और चित्रकला पर हाथ आज़माया । वार्ली समुदाय के बच्चे और बच्चियाँ स्थानीय स्कूलों में क्या सीखते हैं, यह भी देखा।हमें यह देख कर संतोष हुआ कि वार्ली लड़के और लड़कियां अपने कला के साथ साथ हिंदी भाषा भी सीख रहे हैं।
हमारा चौथा और अंतिम गंतव्य राजस्थान राज्य में अलवर जिला था-वह क्षेत्र जिसने दशकों से पानी की कमी का अनुभव किया है। अलवर सरिस्का के जंगल में रहने वाले दर्जनों जंगली जानवरों का घर भी है। हमने स्थानीय समुदायों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में जानकारी हासिल की। स्थानीय कुओं और तालाबों में पानी का स्तर कम हो गया था जिससे लोगों और जानवरों के जीवन पर प्रतिकूल असर पड़ा। हालांकि, स्थानीय आबादी छोटे बांध बनाकर बारिश के पानी को संजोने में कामयाब रही है। अस्सी के दशक की शुरुआत में एक स्थानीय गैर-सरकारी संगठन तरुण भारत संघ द्वारा कुओं, तालाबों और नदियों को फिर से जीवंत करने की पारंपरिक पद्धति को पुनर्जीवित किया गया था। तब से टीबीएस के स्वयंसेवक मैगसेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. राजेंद्र सिंह के मार्गदर्शन में जोहड़ और पोखर बनाकर जल संसाधनों को संरक्षित करने के लिए ग्रामीणों के साथ काम कर रहे हैं ।राजेंद्र सिंह जी ने पीने और खेत की सिंचाई के लिए पानी को संरक्षित किया है, और गांवों के कुओं में पानी के स्तर को बढ़ाने के लिए नदियों को पुनर्जीवित किया है, जिससे महिलाएं और लड़कियां मीलों दूर से पानी लाने के बजाय अधिक उत्पादक गतिविधियों में संलग्न हो सकी हैं। आज अलवर जिले के गांवों में पीने और अपने खेत की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी है। वे अपने जीवन को संतुलित बनाए रखने में सक्षम हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना कर रहे हैं। वे अपने जीवन को बनाए रखने में सक्षम हैं जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना कर रहे हैं।
युवा हिंदी संस्थान फुल ब्राइट-हेस जी पी ए शॉर्टटर्म करिकुलम डेवलपमेंट प्रोजेक्ट 2022 के प्रतिभागियों ने 29 अक्टूबर से 26 नवंबर, 2022 तक 4 सप्ताह के लंबे अध्ययन दौरे के दौरान भारत के विभिन्न स्थानों पर प्रामाणिक सामग्री की किस्मों को देखा, सीखा और एकत्र किया। यात्रा के दौरान बनाए गए सभी वीडियो क्लिप हमारी वेबसाइट https://21st Centuryhindi.com/phase-ll पर उपलब्ध हैं ।
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अशोक ओझा
अमेरिकी शिक्षा विभाग की तरफ़ से वर्ष 2022-23 का ‘फुलब्राइट-हेस हिंदी भाषा पाठ्यक्रम निर्माण ‘ग्रुप प्रोजेक्ट एब्रोड’ पुरस्कार विजेता, अशोक ओझा विगत डेढ़ दशकों से अमेरिका के न्यू जर्सी, पेंनसिलवानिया प्रदेशों में औपचारिक हिंदी कार्यक्रमों का निर्देशन करते आ रहे हैं। श्री ओझा दो ग़ैर लाभ संस्थाओं, ‘युवा हिंदी संस्थान’ और ‘हिंदी संगम फ़ाउंडेशन’ के संस्थापक अध्यक्ष हैं। उन्हें न्यू जर्सी के शिक्षा विभाग से समाज शास्त्र शिक्षक प्रमाण पत्र प्राप्त है। वे भारत में नवभारत टाइम्ज़ समाचार पत्र के मुंबई संस्करण में दो दशकों तक संवाददाता के रूप में कार्यरत रहे, तथा नब्बे के दशक में फ़िल्मस डिविज़न, भारत सरकार तथा लार्सेन एंड टू ब्रो नामक कम्पनी के लिए अनेक वृत्त चित्रों का निर्माण और निर्देशन किया। सन 1996 से अमेरिका के न्यू जर्सी प्रदेश में निवास।
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