गरीबों के भविष्य पर टिकी है अमेरिका की अमीरी
-अशोक ओझा, न्यू जर्सी
डेमोक्रेटिक पार्टी के चार दिवसीय अधिवेशन के एक सप्ताह बाद रिपब्लिकन पार्टी का अधिवेशन सम्पन्न हुआ । दोनों अधिवेशनों में राष्ट्रपति चुनाव के लिए अधिकृत उम्मीदवारों का विधिवत अनुमोदन किया गया। इसी के साथ डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ़ से जो बाईडेन और कमला हैरिस की जोड़ी मैदान में आ गयी है मतदाताओं का समर्थन माँगने तो दूसरी तरफ़ रिपब्लिकन पार्टी की ओर से है ट्रम्प-पेन्स को जोड़ी मैदान में है ।
दोनों अधिवेशनों में दो ऐसी सशक्त महिला नेताओं को अग्रिम पंक्ति में देखा गया जो भारतीय-अमेरिकी समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं । अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों, रिपब्लिकन और डेमोक्रैट, में भारतीय मूल के नेताओं ने अपनी प्रमुखता दर्ज़ करायी। डेमोक्रेटिक अधिवशन में कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार नामांकित किया गया जो अमेरिकी सीनेट के सदस्य भी रह चुकी हैं, और हाल में राष्ट्रपति पद की प्राइमरी में भी उम्मीदवार थीं। कमला और रिपब्लिकन अधिवेशन में साउथ कैरोलाइना प्रदेश की भूतपूर्व गवर्नर और संयुक्त राष्ट्र में भूतपूर्व अमेरिकी राजदूत निक्की हैली— दोनों नेताओं ने अपने भारतीय मूल का हवाला दिया। दोनों के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सिख परिवार में जन्मी निक्की वर्षों पूर्व धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन चुकी थीं, जब कि कमला ने ऐसा कुछ नहीं किया। बहरहाल, भारतीयता दोनों नेताओं की महत्वपूर्ण पहचान बन गयी है।
निश्चय ही निक्की और कमला की सफलता भारतीय -अमेरिकी लोगों के लिए, अमेरिका में भारतीयों की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए सहायक साबित होगी। लेकिन असली प्रश्न यह है कि अमेरिका में श्वेत-अश्वेत की खाई कैसे पाटी जाए! श्वेत पुलिस अफसर निहत्थे काले लोगों पर गोलियां न चलाये, संपन्न श्वेत एक अश्वेत को अपनी बराबरी का दर्ज़ा दे-वह दिन कब आएगा?
नवम्बर के राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय मूल के 18 लाख मतदाताओं का समर्थन दोनों पार्टियां लेना चाहती हैं। टेक्सास, फ्लोरिडा, जॉर्जिया, और मिशिगन, न्यू यॉर्क, न्यू जर्सी, पेन्सिलवेनिया आदि प्रदेशों में भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों की बहुतायत है । यहाँ यह याद दिलाना उचित होगा कि आठ वर्षों तक लुइजियाना प्रदेश के गवर्नर रह चुके भारतीय मूल के रिपब्लिकन नेता पीयूष बॉबी जिंदल ने भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों को हाईफनेटेड अमरीकी की संज्ञा दे कर दुत्कारा था। यह कह कर उन्होंने भारतीय मूल के लोगों को अपमानित किया था, भारतीयता की भावना पर गहरी चोट की थी। अमेरिका के राजनीतिक पटल पर आज जिंदल दिखाई नहीं देते। रिपब्लिकन पार्टी में नया सितारा निक्की हैली के रूप में उभर चुका है । भविष्य में निक्की और कमला की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता देखने योग्य हो सकती है ।
कमला हैरिस का उपराष्ट्रपति उम्मीदवार होना कई बातों की तरफ इशारा करता है। कुछ लोगों का कहना है कि यदि नवम्बर के चुनाव में डेमोक्रैट की जीत हुई, तो बाइडेन की उम्र को, जो कि 78 है, देखते हुए कहा जा सकता है कि उपराष्ट्रपति कमला अमेरिका की भावी राष्ट्रपति हैं। दूसरी तरफ रिपब्लिकन कहते हैं कि निक्की हैली 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनने की राह पर हैं । डोनॉल्ड ट्रम्प की समर्थक होने के बावजूद रिपब्लिकन पार्टी में निक्की की अपनी पहचान है। पार्टी में अनेक गुट ट्रम्प के तौर-तरीकों के नाखुश हैं। यदि निक्की को 2024 में पार्टी उम्मीदवार नामांकित किया जाता है, तो उनके जितने की सम्भावना भी अधिक है। दोनों स्थितियों में मुकाबला कमला हैरिस और निक्की हैली के बीच होगा, और अमेरिकी जनता यह निश्चित करेगी कि क्या अमेरिका का राष्ट्रपति भारतीय मूल की महिला होगी?
दूसरी तरफ डेमोक्रेटिक उम्मीदवार बाइडेन के राष्ट्रपति निर्वाचित होने की स्थिति में कमला सशक्त और प्रगतिशील नेता के रूप में उभरेंगी। उपराष्ट्रपति के पद पर उन्हें अनेक जिम्मेदारियों को सफलता से निभाने के बल पर राष्ट्रपति की उम्मीदवारी की तरफ बढ़ने का अवसर मिलेगा। भविष्य में कमला गरीब, अश्वेत और उपेक्षित अमेरिकी नागरिकों की प्रतिनिधि के रूप में उसी तरह पहचानी जाएंगी जिस प्रकार ओबामा पहचाने जाते थे। ऐसी स्थिति में अमेरिका के पास एक ऐसा नेता होगा जो सब प्रकार से राष्ट्र का नेतृत्व संभालने के काबिल माना जायेगा।
राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन आठ वर्षों तक ओबामा के सहयोगी के रूप में, उपराष्ट्रपति के रूप में कार्यरत रहे और ओबामा प्रशासन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण योजना, ओबामा केयर को कानूनी जामा पहनाने और कांग्रेस के दोनों सदनों में पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। कह सकते हैं कि अमेरिका के नस्लवादी चरित्र में श्वेत वर्ग को ओबामा के करीबी बनाये रखने में भी बाइडेन की बड़ी भूमिका रही। यदि ओबामा श्वेत समाज के प्रति आक्रामक रूख अपनाते तो अमेरिका में ज्यादा दिन टिक नहीं सकते थे। इस वर्ष के चुनाव में श्वेत-अश्वेत समुदाय के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए बाइडेन और कमला की जोड़ी कुछ वायदे लेकर आयी है।
अमेरिकी राजनीति में भारतीय मूल की कमला हैरिस के नामांकन से एक नया मोड़ आया है। कमला ने पार्टी अधिवेशन में अपनी जड़ों का, भारतीयता का, इस आधार पर जिक्र किया कि अमरीका आप्रवासियों के लिए खुला है और उनके लिए अनेक अवसर प्रदान करता है। कमला की माँ श्यामला ने अपनी बेटियों को 'अश्वेत अमेरिकी' की तरह पाल-पोष कर बड़ा किया, कमला कैलिफ़ोर्निया के सर्वाधिक कानून-व्यवस्था संरक्षण के पद पर, एटॉर्नी जनरल पद से होते हुए अमेरिकी सीनेट और आज उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनी। उन्होंने अश्वेत समाज के दुःख दर्द को मिटाने के लिए सतत प्रयास किया। लेकिन क्या वह सब काफी है, अमेरिका का शासक बनाने के लिए?
भारतीय-अमेरिकी लोग अश्वेत अमेरिका के वास्तविक प्रतिनिधि नहीं। वे उस गरीबी और बदहाली से नहीं गुजरे जिससे अफ्रीकी-अमेरिकन कहे जाने वाले, काले लोग, गुजरे हैं, आज भी गुजरते हैं । जिनके पूर्वज अनेक पीढ़ियों तक, सैकड़ों वर्षों तक गुलामी, बेगारी, दासता के शिकार रहे। भारतीय-अमेरिकी लोग मुख्यतः बीसवीं सदी के प्रारम्भ में, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के समय विस्थापित होने शुरू हुए। तब तक अमेरिकी संविधान की रचना हुए डेढ़ सौ वर्ष बीत चुके थे। उस संविधान में श्वेत-अश्वेत का भेद मिटाने की बात कही गयी थी, धार्मिक आज़ादी, बराबरी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात कही गयी थी। हालां कि लगभग आधी शताब्दी के बाद दासता व बेगारी समाप्त करने के लिए अमेरिका को गृह युद्ध से गुज़रना पड़ा जिसका नेतृत्व रिपब्लिकन अब्राहम लिंकन कर रहे थे । वे अमेरिका के उत्तर और दक्षिण को एक संघ में जोड़ना चाहते थे । दक्षिण से ‘दासता’ की प्रथा समाप्त के पूरे अमेरिका में व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता को स्थापित करना चाहते थे; अमेरिका वासियों को एक लोकतंत्र- जो कि अमेरिका वासियों के लिए, उनके द्वारा चयनित हो, देना चाहते थे। लेकिन बीसवीं सदी के साठवें दशक तक भी यह लोकतंत्र अपनी जड़ें जमा नहीं पाया, उसे मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे अहिंसावादी नेता की ज़रुरत पड़ी। कानून बने, लेकिन किंग की मृत्यु के दशकों बाद तक अमेरिका में श्वेत-अश्वेत की खाई समाज के हर अंग में पनप गयी।
लेकिन यह उम्मीद करना कि अमेरिका निकट भविष्य में जातीय भेदभाव को भूला देगा, बचकाना होगा। अमेरिका को पहला अश्वेत राष्ट्रपति सिर्फ इक्कीसवी सदी में ही मिल पाया। लेकिन यहाँ के समाज से गैर बराबरी का नासूर निकाला नहीं जा सका है। ओबामा के शासन काल में क्या बेकसूर अश्वेतों पर गोली नहीं चलायी गयी- कभी पुलिस द्वारा तो कभी श्वेत लोगों द्वारा? ओबामा की नियत पर कोई संदेह किये बगैर कह सकते हैं कि श्वेत-अश्वेत की खाई कम करने में उन्हें विशेष सफलता नहीं मिली। हाँ, अश्वेत भुक्तभोगियों, निहत्थे अश्वेतों के प्रति उन्होंने सहानुभूति ज़रूर दिखाई, लेकिन समाज के रग रग में बसी श्वेत-अश्वेत भेदभाव की भावना और गरीब-अमीर की खाई निरंतर बढ़ती गई है।
अमेरिका में नस्लवाद यहाँ के आप्रवासियों की समस्या के साथ घुल मिल चुका है । रिपब्लिकन पार्टी डोनाल्ड ट्रम्प जैसे श्वेत प्रमुखता के परोक्ष समर्थकों के नेतृत्व के नीचे बंध गयी है। ऐसे समाज के बारे में निक्की हैली का यह कहना कि अमेरिका एक 'रेसिस्ट' समाज नहीं है-क्या सच्चाई पर पर्दा डालने जैसा नहीं? ऐसा कह कर क्या निक्की सच्चाई को झुठला रही हैं? मिनियापोलिस में पुलिस द्वारा फ़्लाएड नामक अश्वेत की गर्दन दबा कर हत्या, ज़ोर्जिया में एक अश्वेत को गोलियों से भून डालने की घटना और हाल ही में विस्कॉन्सिन प्रदेश में एक अश्वेत की पीठ पर पुलिस की गोलियों की बौछार- ये सारी घटनाएँ कौन सी कहानी बयाँ करती हैं?
‘ब्लैक लाइव्ज़ मैटर’ का जन आंदोलन ट्रम्प को पसंद नहीं आता । उनकी पार्टी को भी नहीं! क्या रिपब्लिकन नेता, जिनमें निक्की हैली भी शामिल हैं, कभी उपेक्षित समाज के दुःख दर्द को समझ पाएँगे? रिपब्लिकन पार्टी के अधिवेशन में चर्चा इस बात पर होती रही कि अमेरिका के शहरों में तोड़-फोड़ पर रोक लगाने के लिए, क़ानून-व्यवस्थता को लागू करने के लिए पुलिस तंत्र को मजबूत किया जाएगा। लेकिन 'ब्लैक लाइव्स मैटर' के समर्थन में ठोस बात नहीं कही गयी। और कौन नहीं जानता कि ट्रम्प अनेक बार श्वेत प्रमुखता में विश्वास रखने वाले तत्वों से सहानुभूति रखते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन, ग्लोबल वार्मिंग नियंत्रण के वैश्विक संगठन और अनेक अंतर्राष्ट्रीय समझौतों से अमेरिका को अलग करने के हिमायती ट्रम्प की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति दुनिया के गरीब और संघर्ष शील देशों की नियति से अपने को अलग कर लेने का ही प्रयास है। ताकत और धौंस के सहारे दुनिया को अमेरिका के प्रभाव में लाने के हिमायती ट्रम्प 'स्वतंत्र दुनिया' के नेता कैसे हो सकते हैं जब कि उन्हें इस बात में कोई रुचि नहीं कि मानवता को गरीबी और अन्याय के भँवर से कैसे बाहर निकाला जाय ।
यह पूछना लाज़िमी है कि क्या लोकतान्त्रिक मूल्यों को बचाने, अमेरिका को प्रगतिशील तत्वों का प्रतीक बनने की जिम्मेदारी डोमोक्रेटिक पार्टी पर आ चुकी है? क्या डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने अमेरिकी हितों से ऊपर उठकर पिछड़े देशों की मदद की? क्या सिर्फ़ भारतीय मूल का प्रतिनिधित्व करने के कारण कमला अमेरिका के अश्वेतों, गरीबों, उपेक्षित समाज की रहनुमा बन सकती हैं?
अनेक भारतीय आप्रवासियों की तरह कमला के माता पिता भी अमेरिका विस्थापित हुए थे उच्च शिक्षा के लिए! हाँ, भारतीय मूल की माँ और जमैका मूल के पिता की बेटी कमला अमेरिका में अश्वेत की तरह पली बढ़ी और अश्वेत समाज का प्रतिनिधित्व करने में कभी हिचकिचाहट नहीं दिखाई। यह सही है कि कमला ने कैलिफ़ोर्निया प्रदेश के एटॉर्नी जनरल के पद पर रहते हुए उन लोगों का पक्ष लिया जिन्हें बेघर करने के लिए बैंक और मकान मालिक क़ानूनी दाव-पेंच खेल रहे थे। लेकिन क्या उन्होंने अमरीका के उन हर पांचवे क़ैदी का साथ दिया है जो अमरीकी जेलों के सीखचों में कैद हैं? क्या उनके पास ऐसी कोई नीति है कि अपराधियों की सजा पूरी होने के बाद उनके पुनर्वास की उचित व्यवस्था की जाय? क्या वे उन सजायाफ्ता लोगों के लिए कुछ कर सकती हैं, जो परोल पर छूटने के कुछ ही महीनों बाद बिना कोई अपराध किये, सिर्फ नियम उल्लंघन के कारण, वापस जेल के सीखचों के पीछे जाने को मजबूर हैं? यही वे लोग हैं जिन्हें पुलिस घुटनों के नीचे दबोचती रहती है, या पीठ पर गोलियों को बौछार कर देती है। कुल मिला कर यह प्रश्न उठता है कि अमेरिका जैसे अमीर देश में क्या गरीबों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने की कोई योजना है?
जब तक इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल जाते, अमेरिका के मतदाताओं को सिर्फ इस बात से संतोष करना पड़ेगा देश के सबसे ऊंचे पदों पर अब सिर्फ श्वेत ही नहीं, अश्वेत लोग भी चुन कर आ सकते हैं।