कोरोना का क़हर

कोरोना की दहशत और भारत यात्रा

—अशोक ओझा

भारत के लिए उड़ान भरने वाले विमान धीरे धीरे भर रहा था।  सैकड़ों लोग एक विमान में बंद रहेंगे 15 घंटे तक, यह विचार मन में आते ही घबराहट हुई। फिर अपने आप को समझाया: विमान कंपनी ने ज़रूर कुछ सोचा होगा और थोड़ी देर में यात्रियों को कोरोना वायरस के प्रति सचेत करने के उदघोषणा जारी  होगी । लेकिन विमान के उड़ान भरने के  बाद भी कोई जानकारी नहीं  दी गयी। न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी एयरपोर्ट पर पहुँचने के पूर्व कोरोना के तेज़ी से हो रहे विस्तार के बारे में समाचार पत्रों न्यूज़ चैनल और  सोशल मीडिया के जरिए जानकारी प्राप्त हो रही थी।1 मार्च, 2020 उस दिन मैं न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी से यूनाइटेड की सीधी विमान सेवा से भारत की यात्रा कर रहा था। कनाडा, ग्रीनलैंड, यूरोप के उत्तरी भाग, मध्य एशिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान के ऊपर उड़ते हुए विमान लगभग 15 घंटे में दिल्ली पहुँचने वाला था। विमान में  प्रवेश के पूर्व सुरक्षा अधिकारीयों की अनुमति से सेनिटाइज़र की छोटी बोतल जेब में रख ली थी। विमान में मेरी सीट पैतालीसवीं पंक्ति में थी। अधिकांश सीटें भर गयी थीं। अपनी सीट पर बैठने के बाद इधर उधर नज़र डाली-अधिकांश चेहरे अपनी भारतीय पहचान बता रहे थे। कुछ गैर भारतीय भी लग रहे थे। विमान में अधिकांश सीटों पर लोग बैठ चुके थे। इस बात से कोई परेशानी किसी के चेहरे पर नहीं दिखी। कुछ लोगों ने चेहरे पर मास्क, यानी, कपड़े का मुखौटा पहन रखा था। मैंने सोचा, अपनी सीट को सेनिटाइज़र से पोंछ लूँ। विमान के पिछवाड़े में एक  एयर होस्टेस खान-पान की तैयारी में जुटी थी। उसका ध्यान बाँटने की कोशिश करते हुए ऊँची आवाज़ में पूछा: क्या सैनिटाइज़र नैपकिन मिल सकता है? एयर होस्टेस ने जैसे मेरी बात ही न सुनी हो! खैर, दुबारा पूछना निरर्थक जान पड़ा। पराजित सा अपनी जगह पर लौट आया। क्या यूनाइटेड विमान कंपनी यात्रियों को डराना नहीं चाहती थी या उसने कोरोना वायरस से यात्रियों को सुझाव देना अपना कर्तव्य नहीं समझा!

थोड़ी देर में विमान हवा में तैर रहा था। विमान परिचारिका ने सार्वजानिक घोषणा करते हुए सूचित किया कि भारत पहुँचते हुए दो बार भोजन और एक बार नाश्ता परोसा जाएगा। अच्छा लगा कि ये उदघोषणाएँ अंग्रेजी  के साथ साथ हिंदी में भी हो रही थीं। भोजन और पेय परोसे जाने तक कोरोना वायरस से बचाव के बारे में यात्रियों को किसी किस्म का निर्देश या सलाह विमान कर्मचारियों की सार्वजनिक घोषणा सूची में शामिल नहीं था।  कम से कम यात्रियों को इतना तो याद दिला देते कि खांसते या छींकते समय अपना मुँह ढक लें। विमान परिचारिकाओं ने यात्रियों को यह भी नहीं याद दिलाया कि खाने के पूर्व अपने हाथ अच्छी तरह धो लें। क्या यूनाइटेड विमान कंपनी यात्रियों को डराना नहीं चाहती थी या उसने कोरोना वायरस से यात्रियों को सुझाव देना अपना कर्तव्य नहीं समझा! खैर, जर्सी सिटी के जाने माने शाकाहारी भारतीय भोजनालय राजभोग द्वारा विमान यात्रियों के लिए विशेष तौर पर पकाये गए भोजन, नाश्ते का स्वाद लेते हुए , 'गली ब्वाय' और हॉलीवुड की एकाध फ़िल्में देखते हुए, वायरस के आक्रमण को भगवान भरोसे छोड़ कर 15 घंटे बिताए जिसके बाद विमान दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। विमान से बाहर निकलते ही मोटर चालित वाहन के चालक ने बैठने के संकेत दिया। कुछ ही मिनटों में मैं  आप्रवासन दरवाज़े के पास खड़ा था। वहां विदेशी भारतीय नागरिकों के लिए अलग प्रवेश द्वार बना दिए गए हैं। आप्रवासन अधिकारी के पास मिनटों में पहुँच गया, अपना पासपोर्ट  और ओवरसीज सिटीजन्स ऑफ़ इंडिया पंजीकरण दस्तावेज जांच के लिए उसके सुपुर्द की। विनम्र अधिकारी ने दस्तावेजों की जांच की और मुझे सामान लेने की दिशा में स्वचालित पट्टियों की तरफ जाने का संकेत दिया। सब कुछ बिना किसी परेशानी के हो गया। बोर्ड पर देखा कुआलालम्पुर (मलयेशिया), कुवैत, ईरान से आने वाली यात्री भी उसी बेल्ट नंबर 8 से अपना सामान उठाने वाले थे। माथा ठनका, इन्हीं देशों में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले सामने आये हैं। खैर, लोगों से दूरी बनाने की कोशिश करते हुए, बेल्ट पर नज़र गड़ाए हुए अपने सूटकेस के आने की प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर में देखा मेरा सूटकेस मेरी और चला आ रहा था।  उसे यात्रियों के लिए उपलब्ध ट्राली (जिसे अमेरिका में कार्ट कहते हैं)  पर रखा और विमान स्थल के निकास की तरफ चल पड़ा। किसी ने कुछ नहीं पूछा। थोड़ी देर में मैं विमान स्थल इमारत के बाहर टैक्सी की प्रतीक्षा कर रहा था।  दिल्ली के कनाट प्लेस जैसे इलाके में में जन जीवन सामान्य रूप से चल रहा था, लेकिन एक सप्ताह  पहले  हुए सांप्रदायिक दंगे की  गूंज अभी भी सुनाई  पड़ रही थी। कुछ ही दिन पूर्व संपन्न हुए प्रदेश चुनाव में आम आदमी पार्टी भारी बहुमत से विजय हासिल कर चुकी थी और अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली सरकार कार्य भार संभाल चुकी थी। सामान्य लोग अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त होने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन तभी कोरोना ने दस्तक भी दे दी। जनपथ पर पर्यटकों की भीड़ नहीं थी। मेरे जैसे कुछ ग्राहक गणेश, बुद्ध, शिव जैसे लोकप्रिय देवी देवताओं की कांस्य की नन्हीं मूर्तियां, शाल , दुपट्टे, कृत्रिम जेवर आदि मित्रों, परिचितों को उपहार में देने के लिए खरीद रहे थे। महंगे रेस्तरां के बाहर दरवान ग्राहकों का स्वागत करने में व्यस्त थे। दोपहर का भोजन करने मैं पंजाब ग्रिल नामक रेस्तरां में पहुंचा। एक कर्मचारी से पूछा क्या रेस्तरां की शाखा वाशिंगटन डी सी में भी है? कर्मचारी ने मेरी जानकारी को सही बताया। पिछली सर्दियों में जब एक सम्मेलन में शामिल होने जब अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी सी में था, एक रात गूगल से पूछा कौन सा भारतीय भोजन परोसने वाला रेस्तरां मेरे नज़दीक में है? रेस्तरां की सूची के साथ उनका फ़ोन संपर्क देखा, अनेक रेस्तरां में फ़ोन लगाया, हर जगह आधे घंटे से अधिक की प्रतीक्षा! सिर्फ 'पंजाब ग्रिल' नमक रेस्तरां से तुरंत आने का बुलावा प्राप्त हुआ।लेकिन वहां पहुंचने पर देखा पूरा रेस्तरां लगभग भर गया था।  फिर भी , हमें बैठने की जगह मिल गयी थी, भोजन भी स्वादिष्ट था। नई  दिल्ली के 'पंजाब ग्रिल' में भी भोजन स्वादिष्ट होना चाहिए। इसी उम्मीद से वहां गया था। अपेक्षा के विपरीत वेटरों ने मास्क नहीं पहना था।   ईश्वर को याद किया और खाने का आर्डर दे दिया। दिल्ली में घटनाक्रम कितनी तेज़ी से बदल रहा था। अगले दिन अख़बारों से मालूम हुआ कोरोना अपने   वायरस के पाँव पसार रहा है-इटली से लौटे यात्रियों का समूह आगरा, जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर का भ्रमण कर दिल्ली आ चुका था।  जयपुर में जांच के बाद एक महिला वायरस से संक्रमित पायी गयी। खोज शुरू हुई कि उसका संपर्क कहाँ और  कितने लोगों से हो चुका था। संक्रमित लोग आगरा और दिल्ली के होटलों में  पार्टी  कर चुके थे। होटल कर्मचारियों  को घर में रहने के आदेश जारी किये गए। दिल्ली के नोएडा, हैदराबाद, केरल आदि स्थानों पर संक्रमित लोग पाए गए।मेरी भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य जोधपुर, जैसलमेर का दौरा कर वहां के जन-जीवन पर फोटो-वीडियोसामग्री एकत्र करना था। 5 मार्च को मैं विमान से  जोधपुर जाने वाला था। उस दिन सवेरे 10  बजे दिल्ली विमान स्थल  पहुंचना था।सुबह छह बजे बिस्तर से उठा तो मन में कुछ आशंका पैदा हुई। जैसे अंतर्मन से आवाज़ आई -जोधपुर यात्रा रद्द करो। मैंने इस आतंरिक निर्देश का पालन किया और यात्रा से जुड़े सभी आरक्षण रद्द किए।  भारत आकर शॉपिंग न करें, यह बड़ा अजीब लग रहा था। अपने परिचित टैक्सी चालक कवीन्द्र को फ़ोन कर बुलाया कि गाड़ी को सैनिटाइज़  कर मुझे लेने आ जाय, ताकि बाज़ार जा सकें। एक मास्क कवीन्द्र को दिया, और चल पड़े कनाट प्लेस की  तरफ! इधर अमेरिका में भी कोरोना वायरस के फ़ैलने की खबर आ रही थी। मेरी वापसी दो सप्ताह बाद थी। एयरलाइन्स की तरफ से सूचना जारी की गयी कि आरक्षण में बदलाव करने पर कोई शुल्क नहीं लगेगा। मैंने सोचा, इस सूचना के बाद अमेरिका से भारत आये काफी लोग अपनी यात्रा में परिवर्तन कर वापस लौटना चाहेंगे। कही ऐसा न हो कि वापसी टिकट बदलने में देर करने पर विमान में जगह ही न मिले। इसी  उहापोह के साथ यूनाइटेड एयरलाइन्स के दिल्ली कार्यालय में फ़ोन किया और पूछा कि क्या वापसी की  तारीख बदलने की गुंजाइश है? जवाब सकारात्मक मिला, एयरलाइन्स प्रबंधकों ने बिना शुल्क यात्रियों के टिकट बदलने की अनुमति ग्राहक सेवा को दे दी थी। मैंने निर्णय किया जल्द से जल्द वापस लौटना चाहिए, कारण हालत हर दिन बिगड़ रहे थे। मैंने एयरलाइन्स से अगले दिन यानी 6 मार्च का टिकट बाने के निर्देश दिया जिसके लिए 39 डॉलर का अतिरिक्त खर्च वहां करना पड़ा, जो कि यात्रा तिथि बदलने के कारण यात्रा शुल्क मेंबढ़ोत्तरी  के कारण भरना पड़ा।  मैंने राहत की सांस ली! टैक्सी में बैठे बैठे मास्क को ढीला किया और कवीन्द्र को बताया: यात्रा की तारीख बदल दी है।  कवीन्द्र की यह  समाचार उत्साह वर्द्धक नहीं लगा। उसने सिर्फ 'अच्छा' कह कर अपनी स्वीकृति दी और विमान के जाने का समय पूछा। अगले दिन 6 मार्च को वापसी की तैयारी थी। कनाटप्लेस के अपने  परिचित दर्ज़ी के यहाँ सूट बनवाने के लिए दिया था। उसने कहा, कम से काम ट्रायल तो कर के जाओ  ताकि सिलाई पूरी कर सकें। मैंने दिल्ली प्रवास के अंतिम दिन सिर्फ ट्रायल देने सुपर फ़ास्ट मेट्रो से द्वारका सेक्टर 21 से शिवजी स्टेडियम तक गया। 

सिर्फ चार स्टेशनों के बाद 20 मिनट की यात्रा के बाद कनाट प्लेस के निकट पहुँचाने का यह सबसे सुरक्षित परिवहन था। शिवजी स्टेडियम पर स्टेशन के बाहर निकलने के पूर्व दर्जनों देशों के वीसा आवेदन कार्यालयों के सामने से गुजरना पड़ता है। विदेशों में नौकरी के लिए जाने वाले भारतीय वीसा आवेदकों की भीड़ काम था, चीन के वीसा कार्यालय के बाहर तो बिलकुल नहीं। स्टेशन से बाहर निकल कर दर्ज़ी के यहाँ पहुंचा तो देखा वहां किसी कर्मचारी  ने  मास्क नहीं पहना था। दूकान मालिक से पूछने पर जवाब मिला: हाथ धोने के लिए पानी की व्यवस्था  है। उसने अपने कर्मचारियों के  लिए  साबुन की व्यवस्था भी नहीं की थी। इस दुकान में सूट वनवाने का खर्च 15 हज़ार रुपए से भी अधिक होता है।  शाम को अमेरिका के लिए विमान यात्रा के लिए अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुंचा। दिल्ली विमान स्थल पर अमेरिका जाने  वाले विमान यात्रियों की दोहरी सुरक्षा जांच होती है। सबसे पहले 'चेक इन' के बाद भारतीय सुरक्षा कर्मियों द्वारा स्वचालित मशीन से जांच होती है, बाद में विमान में सवार होने के पूर्व विमान कम्पनी के सुरक्षा कर्मी दूसरी बार यात्रियों और  उनके  सामान की जांच करते हैं। दूसरी बार की जांच के बाद आप  सिर्फ विमान की तरफ ही जा सकते हैं। यह जांच प्रक्रिया अमेरिका के होम लैंड सिक्योरिटी विभाग के नियमों के तहत 9-11 की घटना के बाद लागू की  गई ! लेकिन 6 मार्च को कोरोना वायरस बचाव से सम्बंधित कोई उपाय नई दिल्ली से नेवार्क जाने वाले यात्रियों को नहीं बताये गए। विमान में सवार होने के बाद भी, न तो सैनिटाइज़र न ही  मास्क, कुछ नहीं दिया गया। 15 घंटे तक विमान के अंदर एक साथ सैकड़ों यात्री साथ रहे। विमान 7 मार्च की सुबह 5 बजे न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी पहुंचा। लेकिन विमान से बाहर निकल कर कस्टम जांच तक जाते हुए किसी ने न तो स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई प्रश्न पूछे, न ही किसी का बुखार चेक किया। मेरे आगे लगभग एक दर्ज़न छात्र, हँसते हुए कोरोना का मजाक उड़ाते हुए इस चर्चा में लीन थे कि जयपुर के आमेर महल में हाथी की सवारी कितनी मज़ेदार थी। विमान स्थल से बाहर  निकल कर मैंने रुमाल से मास्क बनाया, मुँह ढंका और टैक्सी में सवार होकर एडिसन शहर स्थित अपने घर पहुंचा। घर में प्रवेश करते ही पहला कार्य यह किया कि कोरेक्स से सभी सामान पोंछे, जूतों को पोंछ कर दरवाज़े के पास रखा, जो भी पहना था, सब उतारा, और  कपड़ा धोने की मशीन के हवाले किया, और बाथरूम की तरफ जाते हुए  स्नान करने का कार्यक्रम बनाया । उस दिन से 15 दिनों के लिए अपने आप को सामजिक गतिविधियों से दूर रखने का भरसक प्रयास किया है। भारत से मेरी वापसी के बाद दिन-ब-दिन हालात बिगड़ते जा रहे हैं। दुनिया के अधिकांश देशों में कोरोना की दहशत है। अमेरिका में आपात काल घोषित किया  जा चुका  है। पिछले एक माह से हालत तेज़ी से बिगड़े हैं।इटली का हाल सुनकर दिल दहल जाता है। न्यू यार्क प्रदेश और शहर में संक्रमित लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। न्यू यॉर्क मेयर डी ब्लासियो का कहना है कि अगले दो माह तक संक्रमण बढ़ता ही जायेगा। अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के पास पर्याप्त सुरक्षा साधन नहीं हैं। ऐसे में हम सब यथा संभव अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकते हैं। न्यू जर्सी सहित अमेरिका के अनेक प्रदेशों में को पूरी तरह लॉक डाउन किया जाचुका  है। इन प्रदेशों के सभी निवासियों को घर के अंदर रहने के निर्देश दिए गए हैं। 

दहशत की इस घड़ी में मैंने एहतियाती कदम उठाये हैं। सबेरे उठ कर सबसे पहले हाथ-मुँह धोता हूँ । यानी साबुन से हथेली, उँगलियों को  20 सेकंड तक रगड़ना, फिर दोनों हाथों को नल के नीचे गरम पानी से धोना, फिर नैपकिन से-जिसे कपड़ा धोने की मशीन में साफ़ किया था-पोंछना, रात के पहने कपड़ों को निकाल कर सीधे धोने की मशीन में डालना, कल के धुले कपडे पहनना, फिर क्लोरेक्स सेनिटाइज़र से रसोई घर और लिविंग रूम के उन स्थानों को पोछना जहाँ पूरे दिन बैठता हूँ। खिड़की, दरवाजे के  हैंडल, चिटखनी आदि को सेनिटाइज़र से पोंछने के बाद ही चाय की पतीली गैस पर रखता हूँ। चाय पान के बाद अपने कार्यालय में जिन वस्तुओं का  इस्तेमाल करता हूँ-जैसे कुर्सी, मेज, कंप्यूटर, पेन, नोटपैड-इन सबको सेनिटाइज़र से पोंछ कर ही उनका उपयोग करता हूँ । लिखने-पढ़ने से मन ऊब जाने पर नजदीक के पार्क में गया था। पार्क विभाग के कर्मचारियों ने बाथरूम बंद कर रखा है। बैठने के लिए जगह जगह रखे बेंच पार्किंग क्षेत्र से हटा दिए गए हैं। आप नगरपालिका या काउंटी के पार्क में घूम तो सकते हैं, लेकिन खेल-कूद उपकरणों और संसाधनों को बंद कर दिया गया है।कार में बैठने के पूर्व स्टीरिंग, दरवाज़े, सीट ओर जहाँ भी हाथ पहुँचता है, उन्हें सैनिटायज़ कर लिया है।

सड़कों पर गाड़ियों की आवाजाही एकदम बंद है। दुकानों में दैनिक उपयोग की चीजें आउट ऑफ़ स्टॉक हो रही हैं। पानी के बोतलों  की राशनिंग हो रही हैं। शादी-विवाह जैसी गतिविधियाँ  दुखांतिकाओं में बदल रही हैं। न्यू जर्सी के फ्रीहोल्ड नगर में एक परिवार में शादी समारोह मातम में बदल गया --रात्रि-भोजन समारोह के बाद परिवार के चार लोग बीमार पड़ गए। उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया  गया। दो दिनों के भीतर दो सदस्य चल बसे, फिर परिवार की सबसे बड़ी सदस्य, जो कि वेंटिलेटर पर थी, वह भी चल बसी। उसे यह भी पता नहीं था कि उसके परिवार के दो सदस्य पहले ही स्वर्गवासी हो चुके हैं। 

पिछले दो दिनों में बेरोजगारी भत्ता के लिए  आवेदकों की संख्या लाखों में पहुँच गयी है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने सभी अमेरिका वासियों को आर्थिक मदद देने की घोषणा की है। रेस्तरां और बार बंद होने से पूरे अमेरिका में लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं। समाज की लगभग समस्त गतिविधियां ठप्प हैं। मानवीय गतिविधियों के बंद होने से  कुछ ऐसे नतीजे सामने आ रहे हैं, जिन्हें देख-सुन कर कैसी प्रतिक्रिया होनी चाहिए?पता नहीं  सड़कों पर गाड़ियां और आकाश में विमानों की उड़ान कम हो गयी है। इससे पर्यावरण प्रदूषण कम हो रहा है। वायुमंडल में कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा कम हो रही है। 

  

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Ashok OjhaComment