‘स्टारटॉक’ और हिंदी का विस्तार -अशोक ओझा
न्यू जर्सी के भारत वंशियों को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए कि इस प्रदेश में उनकी भारी उपस्थिति से विगत दो दशकों में हिंदी शिक्षा का विस्तार हुआ है। इस प्रदेश में हिंदी की अनौपचारिक शिक्षा के अवसर मंदिरों, सामुदायिक केंद्रों और कुछ निजी संस्थाओं के सौजन्य से उपलब्ध रहे हैं ।इन संस्थाओं में हिंदी यू एस ए का नाम प्रमुख है। इन साप्ताहिक हिंदी कक्षाओं के माध्यम से हिंदी विस्तार के लिए 'हिंदी यू एस ए' और उसकी जैसी अनेक संस्थाओं को, उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए, श्रेय दिया जाना चाहिए । 'हिंदी यू एस ए' नामक संस्था के लिए दो शब्द और-लगभग डेढ़ दशकों से यह संस्था दर्जनों स्थानों पर अपनी कक्षाएँ संचालित करती है,जिसके सतत प्रयास से ही मेरे निवास स्थान एडिसन नगर में हिंदी समर्थक माहौल बना और एडिसन स्कूल डिस्ट्रिक्ट में हिंदी को विदेशी भाषा के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया । स्टारटॉक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी यहाँ आयोजित हुआ था, जिसके परिणाम स्वरूप संस्था की अनेक शिक्षिकाओं ने औपचारिक शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त किया। औपचारिक हिंदी शिक्षा एडिसन के स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा बनी, लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय, सन 2019 में, एडिसन नगर के दोनों उच्च विद्यालयों से हिंदी शिक्षा का का पटाक्षेप हो रहा है । यह भारतीय समाज के लिए दुर्भाग्य की बात है कि लगभग दस वर्षों तक एडिसन विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल रहने के बाद हिंदी शिक्षा फलने फूलने के बजाय अस्ताचल की ओर चल पड़ी। इस दुखद परिस्थिति के लिए भी भारतीय समुदाय की उदासीनता ही जिम्मेदार है। एडिसन स्कूल बोर्ड के कुछ सदस्यों और वहां की हिंदी शिक्षिका से 2019 के बोर्ड चुनाव के दौरान पूछताछ के बाद पता चला कि हिंदी पढ़ने के लिए इच्छुक विद्यार्थियों की संख्या इतनी कम है कि हिंदी शिक्षक के पद को बनाए रखना और हिंदी क्लास चलाते रहना संभव नहीं है। 2012 में मैंने पेन्सिलवेनिया के बेनसेलम नगर के स्कूल डिस्ट्रिक्ट में हिंदी कक्षा चलाने का सफल अभियान चलाया था, जिसे वहां के बोर्ड ने मान भी लिया था, लेकिंन हिंदी कक्षा की सम्भावना प्रारम्भ होने से पूर्व ही दफ़न हो गयी-इसी तर्क के आधार पर कि हिंदी पढ़ने के इच्छुक विद्यार्थियों की कमी है।
ऐसा क्यों है कि न्यू जर्सी, न्यू यॉर्क और पेन्सिलवेनिया जैसे प्रदेशों में भारतीय परिवारों की आबादी बढ़ने के बावजूद यहाँ के स्कूलों में हिंदी को शामिल करना कठिन रहा है। क्या भारतीय परिवार अपने बच्चों को हिंदी सिखाने में दिलचस्पी नहीं रखते? हिंदी शिक्षण के अपने लम्बे अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि सच्चाई कुछ और है। मेरी समझ से हमारे समाज में अपनी भाषा के महत्त्व को तार्किक ढंग से समझाया नहीं गया। स्कूलों में पढ़ रहे अनेक बच्चों के माता पिता से बातचीत के बाद पता चला कि वे हिंदी या भारतीय संस्कृति के प्रति लगाव तो रखते हैं लेकिन अपने बच्चों को खेल, पियानो आदि सिखाना ज्यादा ज़रूरी मानते हैं। दूसरी तरफ राज्यों के या स्थानीय शिक्षा विभाग भाषा के सम्बन्ध में जब भी सर्वेक्षण करते हैं तब हिंदी के लिए पर्याप्त समर्थन प्राप्त नहीं हो पाता। सोचने की बात है कि अनौपचारिक हिंदी कक्षाओं में बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। वह कैसे? जब कि औपचारिक शिक्षा के अवसर पनप नहीं रहे। इन सभी पहलुओं पर विचार ज़रूरी है क्योंकि हिंदी की प्रगति में अनेक किस्म के अवरोध हैं। उन्हें पार करना के लिए 'रोड मैप' बनाना आवश्यक है।
इसमें दो राय नहीं कि अपनी भाषा को प्रचारित-प्रसारित करने में समाज की एकजुटता और एकता महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अमेरिका के भारतीय समाज को अपने सांस्कृतिक उद्देश्यों का निर्धारण करना होगा। उन्हें इस निष्कर्ष पर पहुँचाने के लिए कि हिंदी की प्रगति में अन्य भारतीय भाषाओं की प्रगति निहित है, सतत प्रयत्न आवश्यक है। अपने हिंदी शिक्षण अभियान में मैं यह कोशिश करता रहा हूँ कि भारतीय मूल के लोगों के समक्ष यह तर्क प्रस्तुत करूँ कि अमेरिका में हिंदी भारत के सभी प्रदेशों की प्रतिनिधि भाषा है। मेरे इस प्रयास को यदि किसी कोने से पुरजोर समर्थन मिला वह है लैंसडेल, पेन्सिलवानिया का अहिन्दीभाषी समाज, जहाँ मैं 2013 में हिंदी शिक्षण के विस्तार का लक्ष्य लेकर पहुंचा।
इन पक्तियों को लिखने का उद्देश्य उन परिस्थितियों की चर्चा करना है जिनसे गुजर कर इस सदी के दूसरे दशक में मेरी हिंदी यात्रा आगे बढ़ी। इस दिशा में युवा हिंदी संस्थान की स्थापना प्रारंभिक और आवश्यक कदम था जिसके बिना स्टारटॉक कार्यक्रम प्रारम्भ हो नहीं सकता था। यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिलवानिया (फ़िलेडैल्फ़िया) परिसर में संस्था के सभापति सुरेंद्र गंभीर के नेतृत्व
में हम इस लक्ष्य को लेकर आगे बढ़े कि अमेरिका के विभिन्न नगरों में हिंदी का प्रचार-प्रसार स्टारटॉक के माध्यम से करेंगे।वर्ष 2010 के लिए एक तरफ स्टारटॉक प्रस्ताव लिखने और उसे कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी गंभीर जी के कंधों पर थी, तो दूसरी तरफ इस कार्यक्रम के ढांचे को समझना और सीखना हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। प्रस्तावित कार्यक्रम स्थल अटलांटा निर्धारित किया गया जहाँ हमारे साथी पहले से हिंदी पढ़ा रहे थे। इधर न्यू जर्सी में युवा हिंदी संस्थान को आधिकारिक रूप देने की जिम्मेदारी मेरी थी। युवा हिंदी संस्थान की स्थापना के अवसर पर सामुदायिक टेलीविजन केंद्र टी वी एशिया के सभागार में एक समारोह आयोजित किया गया, जिसका प्रयोजन टी वी एशिया के प्रमुख एच आर शाह ने किया।
युवा हिंदी संस्थान की स्थापना के प्रारंभिक दिनों में मेरे समक्ष दो लक्ष्य थे-अपने आप को हिंदी शिक्षक के रूप में स्थापित करना और दूसरा हिंदी पढ़ाने के नए अवसरों की तलाश या उनका निर्माण करना। इस सदी के प्रथम दशक में स्थानीय सामुदायिक प्रकाशनों में लिखने के सिलसिले में न्यू यॉर्क और न्यू जर्सी में जिन सामाज सेवियों से परिचित हुआ था उनमे प्रमुख थे न्यू जर्सी के विधायक (असेंबली मैन) उपेंद्र चिवुकूला। उन्होंने मेरी हिंदी यात्रा को सफल बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई। दो दशकों से अधिक समय तक न्यू जर्सी में नगर परिषद सदस्य (फ्रेंक्लिन नगर) से चल कर प्रदेश असेम्बी (विधान मंडल) में जन प्रतिनिधि रहे उपेन्द्र चिवुकूला मूलतः तेलुगू भाषी हैं, लेकिन मेरी हिंदी शिक्षण यात्रा में सदा सहभागी रहे। 1998 से ही न्यू जर्सी असेंबली में फ्रेंक्लिन नगर का प्रतिनिधित्व कर रहे चिवुकूला 2012 में अमेरिकी कांग्रेस के लिए प्रत्याशी बने, लेकिन चुनाव हार गए। लगभग डेढ़ दशकों तक भारतीय समुदाय का यह चमकता सूरज वाशिंगटन जाने से वंचित रह गया। काश! उन्हें भारतीय समाज एकजुट समर्थन प्राप्त हुआ होता! अपनी राजनीतिक यात्रा की समाप्ति के बाद उन्होंने न्यू जर्सी के रिपब्लिकन गवर्नर क्रिस क्रिस्टी के शासन काल में कमिश्नर का पद स्वीकार कर लिया और अमेरिकी राजनीति की मुख्य धारा से दूर चले गए।
टीवी एशिया में युवा हिंदी संस्थान की स्थापना का समारोह उत्साहजनक ढंग से संपन्न हुआ।अटलांटा स्टारटॉक कार्यक्रम की संरचना गंभीर जी कर रहे थे। मेरे सामने प्रश्न था कि शिक्षण के क्षेत्र में कैसे आगे बढूं? तात्कालिक समाधान यह था कि वैकल्पिक शिक्षक के अवसरों का पूरा पूरा लाभ उठाया जाय। हालां कि वैकल्पिक शिक्षक बन कर मेरी आय पहले से आधी हो गयी थी, जिससे घर खर्च चलाना मुश्किल था। सौभाग्य से हेमा जी (मेरी पत्नी) अपनी नौकरी से बंधी थीं, उससे जो कमाई होती उसे घर खर्च में झोंक दिया जाता। वैकल्पिक शिक्षक के रूप में जो आमदनी होती उसे घर खर्च में शामिल करने के सिवा चारा नहीं था। अनेक कठिनाइयों के बावजूद हेमा जी अपनी नौकरी किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थीं, क्यों कि उनकी नौकरी से जुड़ा था हम दोनों का स्वास्थ्य बीमा जो कि स्थायी नौकरी टूटने पर समाप्त हो जाता। यह अमेरिकी समाज व्यवस्था का एक दुखद पहलू है जिसे अब तक हल नहीं किया जा सका। राष्ट्रपति ओबामा के शासन काल का सर्वोपरि लक्ष्य था सभी अमरीकी वासियों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना तैयार करना, जिसमें वे सफल भी हुए। लेकिन राष्ट्रपति ट्रम्प के आते ही इस योजना को कमजोर करने के प्रयास किये गए, हालां कि ओबमा केयर का मूल ढांचा-अमेरिकी जनता के लिए आवश्यक स्वास्थ्य योजना- इतना लोकप्रिय था कि इसे पूर्णतः ध्वस्त करना सम्भव नहीं। 2020 में ट्रम्प का कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व राष्ट्रपति चुनाव अभियान के प्रमुख मुद्दों में 'सबके लिए स्वास्थ्य योजना' सबसे ऊपर है, हालां कि इस विवादास्पाद मुद्दे का लक्ष्य है 'सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को सस्ता कैसे बनाया जाय!'
उपेंद्र जी से बातचीत के दौरान मैंने उन्हें स्टारटॉक कार्यक्रम के उद्देश्यों और उसके ढांचे की जानकारी दी। इस कार्यक्रम का गठन अमेरिकी सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के तहत चुनिंदा गैर-अंग्रेजी भाषाओं की प्राथमिक से लेकर स्नातक स्तर तक, जिसे के-16 ग्रेड कह सकते हैं, पढ़ाई के लिए सन 2007 में किया गया। यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के राष्ट्रीय विदेशी भाषा केंद्र को इस कार्यक्रम का संचालन करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी।कार्यक्रम के संचालकों ने यह तय किया कि उसे जून से अगस्त माह के दौरान ही, जब स्कूलों में सत्रावसान की लम्बी छुट्टी रहती है, चलाया जाना चाहिए। स्टारटॉक कार्यक्रम एक तरफ शिक्षक प्रशिक्षण का कार्य करता है, तो दूसरी तरफ प्रशिक्षिति शिक्षक 'के-16' स्तर के विद्यार्थियों को हिंदी बोलना, लिखना, और पढ़ना सिखाने का कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इन कार्यक्रमों को शिविर भी कहा गया ताकि शिक्षार्थियों को पढ़ाई के बोझ का आभास न हो। लेकिन कार्यक्रम के उद्देश्यों के सम्बन्ध में शिक्षक-प्रशिक्षण के दौरान भली भांति यह बताया जाता था कि 'शिविर' कह कर कार्यक्रम के भाषा शिक्षण उद्देश्यों को कम नहीं आँका जाना चाहिए। इन तथ्यों से पूरी तरफ वाकिफ होने के साथ मैं इस बात के लिए तत्पर था कि न्यू जर्सी में हिंदी शिक्षण को आधिकारिक मान्यता के साथ प्रारम्भ करना ज़रूरी है। मेरा यह पक्का विश्वास था कि भाषा शिक्षण का यह अभिनव कार्यक्रम स्कूल या कॉलेज के अकादमिक वातावरण में ही संचालित होना चाहिए तभी स्टारटॉक के उद्देश्यों को सही ढंग से पूरा किया जा सके। कार्यक्रम की भाषा-सूची में अरबी, चीनी के साथ हिंदी और उर्दू भी
शामिल थीं।इसका अर्थ यह हुआ कि भारतवंशियों के लिए अपनी ही भाषा सीखने के लिए अमेरिकी सरकार अनुदान देगी। भारतीयों के लिए यह कितना अभिनव मौका है अपनी भाषा सीखने का! अपने कन्धों पर ऐसे कार्यक्रम को साकार करने की जिम्मेदारी संभालने का दृढ़ निश्चय मन में समाया हुआ था।
उपेन्द्र जी मेरी पूरी बात सुन कर शायद भांप गए मेरा दृढ़ निश्चय। बोले: कल मैं एक सरकारी विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी से मिलने जा रहा हूँ, आप स्टारटॉक कार्यक्रम की रूपरेखा बना लीजिए और मेरे साथ चलिए!
इस सुनहरे पर चुनौतीपूर्ण अवसर को कौन हाथ से निकलने दे? मैंने हाँ भरी, अगली सुबह मिलने का समय और स्थान निर्धारित कर उपेंद्र जी से विदा ली। शाम को स्टारटॉक कार्यक्रम को विश्वविद्यालय के बैनर तले आयोजित करने का प्रस्ताव अंकित कर उसकी दो प्रतियां सादे कागज़ पर तैयार कर ली। प्रारूप के नीचे अपने नाम और संपर्क दर्ज़ कर दिया था। मैंने सोचा यदि विश्वविद्यालय स्टारटॉक प्रायोजक बन जाय, तो मैं कम से कम शिक्षक तो बन ही जाऊँगा! स्थानीय स्कूलों में वैकल्पिक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए मेरे अंदर शिक्षक का आत्म विश्वास तो भर ही चुका था, हिंदी पढ़ाने की संभावना और उत्साह रोमांचक रूप ले रहा था। निदेशक बनने की महत्वाकांक्षा अभी दूर थी।
अगली सुबह निर्धारित स्थान पर उपेंद्र जी के साथ चल पड़ा उस यात्रा पर जो मेरे जीवन को चैराहे से अलग लेजाने वाली थी, एक ऐसे मार्ग पर जहाँ आने वाले वर्षों में अपनी सांस्कृतिक जड़ों को सींचने का भरपूर अवसर प्राप्त हुआ। असेंबलीमैन चिवुकूला के साथ न्यू जर्सी के गार्डेन एस्टेट पार्कवे पर हम तेज रफ़्तार से जा रहे थे एलिज़ाबेथ नगर की ओर जो कि न्यू जर्सी की एक घनी बस्ती वाला शहर है। नेवार्क अंतर्राष्ट्रीय विमान स्थल से कुछ ही मील दूर स्थित इस शहर के एक कोने में स्थित है दर्ज़न भर इमारतों का एक छोटा किन्तु आकर्षक परिसर, जहाँ माध्यम और निम्न मध्यम वर्गीय न्यू जर्सी वासी मुख्यतः शिक्षक-प्रशिक्षण और नर्सिंग प्रशिक्षण के लिए जाते हैं। 2009 में एक आधुनिक विश्वविद्यालय का आकर ग्रहण कर रहा था, जिसके एक वरिष्ठ अधिकारी के अतिथि थे-उपेंद्र जी और मैं!
परिसर में एक इमारत की दूसरी मंजिल पर दाखिल हो कर उपेंद्र जी मेज के पीछे बैठी महिला से अपना परिचय दे ही रहे थे कि, भीतर के कमरे से, एक रौबदार व्यक्ति बाहर निकला और गर्म जोशी के साथ हाथ मिलते हुए बोला: असेंबली मैन! आई वाज़ एक्सपेक्टिंग यू! हाऊ आर यू? बाद में उन्होंने मुझसे भी हाथ मिलाया। "हेलो, माय नाम इज...." ,मैं बुदबुदाते हुए बोला।
उसके बाद के कुछ घंटे कुछ इस प्रकार बीते-अधिकारी और उपेंद्र जी आगे-आगे, मैं उनके पीछे पीछे। अधिकारी असेंबली मैन को अपने संस्थान के प्रमुख हिस्सों से अवगत करा रहे थे, मुझे भी उस संस्थान के बारे में जानकारी मिल रही थी, वहां के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति से जो कि विश्वविद्यालय परिसर को अपना घर समझता था। रास्ते में कोई विद्यार्थी मिलता उसका हाल चाल पूछना नहीं भूलता।
"आइए, आपको अपने नए कार्यालय में ले चलूँ।" हम तीनों एक लिफ्ट में सवार होकर इमारत की सबसे ऊपरी मंजिल के नव निर्मित सभागृह में दाखिल हुए। "इसे कुछ ख़ास बैठकों के लिए इस्तेमाल करता हूँ।" दरवाजा खोला और हम तीनों अंदर दाखिल हुए। पेड़ों से लटके पत्ते पतझड़ की घोषणा करते हुए कमरे में झाँक रहे थे। उपेंद्र ने कहा, "अशोक हैज सम प्लान फॉर यू।" (अशोक कुछ योजना लेकर आये हैं।) नज़रें मिलीं, जेब से दो पृष्ठों का प्रारूप निकाला और प्रस्तुत कर दिया।
"अशोक, गो अहेड एंड अप्लाई, वी विल सपोर्ट दिस प्रोजेक्ट, इवन इफ यू डो नॉट गेट द ग्रांट, वी विल डू इट। " (अशोक, इस प्रस्ताव को हम समर्थन करेंगे, अनुदान मंज़ूर हो या न हो!) उन्होंने मेरा प्रस्ताव सरसरी तौर पर पढ़ा, उसे लेकर बाहर गए, और कुछ मिनटों में लौटने पर बोले: "समवन विल कांटेक्ट यू।" (आपसे संपर्क किया जाएगा)
मेरे कानों ने वही सुना जिसकी चाह लेकर मैं वहां आया था।
इस घटना के बाद के कुछ सप्ताह मेरी हिंदी यात्रा के नए दौर के साक्षी बने। मुझे विश्वविद्यालय के तीन वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष स्टार टॉक प्रस्ताव की झलक पेश करने के लिए आमंत्रित किया गया। मैंने पावर पॉइंट तैयार किया जिसे लेकर निर्धारित तिथि और स्थान पर उपस्थित हुआ। अपने प्रदर्शन के प्रारम्भ में ही तीन में से एक अधिकारी को हिंदी में उनका नाम पूछ कर आचंभित किया, फिर सिलसिला शुरू किया उसी प्रश्न को सभी उपस्थित अधिकारियों से पूछने का.. उद्देश्य सफल हुआ। सबको समझ में आ गया कि हिंदी माध्यम से हिंदी की शिक्षा दी जा सकती है, जो कि भाषाविदों के शोध पर आधारित और स्टारटॉक द्वारा मनोनीत छह सिद्धांतों में से एक है-विदेशी भाषा की शिक्षा उसी भाषा में दी जानी चाहिए।
हिंदी कार्यक्रम आयोजित करने के बारे में विश्वविद्यालय को राजी कराने की इस प्रक्रिया के अगले चरण में स्टार टॉक को प्रस्ताव और बजट भेजना शामिल था। इस प्रक्रिया में मैंने प्रस्ताव पेश करने वाले विभाग के अधिकारियों के साथ बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया जिससे उनका भी काम आसान हो गया। विश्वविद्यालय की तरफ से प्रस्ताव भेजा गया जिसमें मेरा नाम प्रोग्राम निदेशक के रूप में शामिल किया गया। इसका अर्थ था कि यदि कार्यक्रम मंजूर हुआ तो मुझे एडजंक्ट प्राध्यापक की सूची में शामिल कर लिया जाएगा। बाद के तीन महीने विश्वविद्यालय को जानने समझने, वहां के सम्बंधित विभाग के अधिकारियों के साथ सम्बन्ध बढ़ाने की कोशिश में अनगिनत यात्राएं भी पूरी कीं। इसी बीच एक वरिष्ठ अधिकारी ने संकेत दिया कि विद्यार्थियों का एक दल शैक्षणिक दौरे पर भारत जा सकता है। इस नयी परियोजना में मैंने अपनी दिलचस्पी दिखायी जिसके कारण भारत भ्रमण का एक नया उद्देश्य मेरे सामने उपस्थित था। यानी अगले वर्ष के लिए एक से अधिक शैक्षणिक परियोजनाएं मेरी प्रतीक्षा कर रही थीं।