अमेरिका में हिन्दी भारतीयता की पहचान बन रही है

अमेरिका में हिन्दी भारतीयता की पहचान बन रही है

अशोक ओझा

गत २० जून से न्यू जर्सी के केन विश्वविद्यालय में तीन सप्ताह की हिन्दी  कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ. इसमें कुल २५ छात्रों का चयन करना था. यह कार्य आसान नहीं था.  अपने घरों में अपनी भाषा को जतन से संभाल कर रखने वाले अधिकाँश भारतवंशी अमेरिका में प्रगति करने के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यिता तो समझते हैं, लेकिन हिन्दी की उपयोगिता को स्वीकार करने में थोडा संकोच करते हैं. मेरी भूमिका इस संकोच को दूर करने की रही है. 

इसके लिए मैं ने न्यू जर्सी के आधे दर्जन मंदिरों, सामाजिक और सांस्कृतिक समारोहों में जाकर भारत वंशियो को यह समझाने की कोशिश की कि वे आठ से ग्यारह कक्षा में जाने वाले अपने बच्चों को कार्यशाला में भेजें. एक दिन एडिसन-इसलिन के भारतीय बाज़ार में जाकर लोगों को जबरन यह बताया कि अपने बच्चों को हिन्दी पढने के लिए भेजें.
तीन सप्ताह तक स्टार टॉक नामक यह कार्यक्रम केन विश्वविद्यालय के स्कूल फॉर ग्लोबल एजुकेशन के तत्वाधान में चला जिसका समापन ९ जुलाई को हुआ. कार्यक्रम में कुल १८ भारतीय और गैर भारतीय मूल के विद्यार्थी शामिल हुए जिन्हें मुफ्त आई पोड प्रदान किया गया ताकि वे हिन्दी रायटर और दूसरे एप्स का प्रयोग हिन्दी सिखने के लिए कर सकें. भारत अतीत और वर्तमान विषय से जुड़े चार पाठ तैयार किये गए जिनके माध्यम से उन्हें भारत के प्राचीन स्मारक, भारत के प्रचलित धर्म और उत्सव, भारतीय ग्रामीण जीवन और गाँधी नेहरु के नेतृत्व पर रोचक सामग्री प्रदान की गयी. हमारे आठ शिक्षकों ने इस बात का ध्यान रखा कि पढाई के दौरान उन्हें तरह तरह की गतिविधिओं में व्यस्त किया जाए न कि भारी भरकम लेख और पाठ पढाये जाएँ. विषयों से जुड़े हिन्दी फिल्मों के दृश्य भी यू ट्यूब से डाउनलोड कर दिखाए गए और उनपर आधारित परस्पर बातचीत के अभ्यास कराया गया. बड़ी उम्र के विद्यार्थिओं ने गाँधी के तीन बन्दर पर आधारित एक दृश्य की रचना की जब कि हाई स्कूल में जाने वाले बच्चों ने स्मारकों की यात्रा  जैसे विडियो क्लिप तैयार किये. उनके सभी कार्यों को विडियो रिकॉर्ड कर वेबसाइट पर अपलोड किया गया है जिसे कोई भी हिन्दी सीखने के लिए उपयोग कर सकता है. 

अमेरिका के के लगभग एक सौ विश्वविद्यालय और कौलेजों में पहले से ही हिन्दी पढाई जाती है.  लेकिन पिछले पांच वर्षों में देश भर में पूरब की सात भाषाओँ की शिक्षा सुलभ करने का एक नया मुहीम चल रहा है जिसका उद्देश्य अगले दो वर्षों में देश के सभी पचास राज्यों में पूरब की इन भाषाओँ का शिक्षण प्रदान करना है. अरबी, चीनी, दरी, उर्दू आदि के साथ पूरब की इन भाषाओँ में हिन्दी का प्रमुख स्थान है. स्टार टॉक नमक इस राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत प्रति वर्ष गर्मी की छुट्टियों में देश के अनेक विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थाएं अमेरिकी क्षात्रों को भाषा और संस्कृति सिखाने का कार्यक्रम आयोजित करती हैं. 

इस ग्रीष्म कालीन कार्यक्रम की विशेषता यह है कि यह पूरी तरह निःशुल्क है. कई संस्थाएं विद्यार्थियों को अनुदान देती हैं और आवासीय कार्यक्रम आयोजित करती है. दो से चार सप्ताह तक चलने वाले ये कार्यक्रम पूर्व निर्धारित पाठ्यक्रम पर आधारित होते है जिनके लिए शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है. लक्ष्य यह है कि इस संक्षिप्त कार्यक्रम के बाद विद्यार्थी भारतीय परिवेश से अपिरिचित न रहें, ज़रुरत पड़ने पर भाषा का इस्तेमाल कर सकें ताकि बातचीत के लिए सूचनाओं का आदान प्रदान करने में घबराएँ नहीं. भाषाई शिक्षण पद्धति विकसित करने के लिए शोध कार्यों में लगी अनेक संस्थाएं स्टार टॉक के लिए पाठ्यक्रम की रूपरेखा बनाने में कार्यक्रम संचालकों की मदद करती हैं ताकि शिक्षक आधुनिक तरीकों का अर्थपूर्ण ढंग से प्रयोग कर सकें. मुख्य उद्देश्य यह है भाषा सिखने में नई पीढ़ी की दिलचस्पी बढे साथ ही वे उस संस्कृति को भी समझ सकें जहाँ से वह भाषा जुडी हुई है. 

इन पांच वर्षों में स्टार टॉक अभियान से जुड़ने वालों की संख्या हज़ारों में पहुँच गयी है. अमेरिका के दर्ज़नों सस्थानों में हिन्दी सिखाने के शिबिर आयोजित होते हैं. शिबिर के दौरान विद्यार्थिओं को व्यवहारिक जीवन के लिए आवश्यक भाषा सिखाने का प्रयास किया जाता है. स्टार टॉक कार्यक्रम में नई पीढ़ी को भाषा सिखाने के साथ ही शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का कार्य भी होता है. दरअसल स्टार टॉक उन कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करता है जिनमे शिक्षक प्रशिक्षण का अंश जुदा होता है. यूनिवेर्सिटी ऑफ़ पेंसिलवानिया, न्यू योर्क यूनिवर्सिटी , केन यूनिवर्सिटी, इंडियन यूनिवर्सिटी में होने वाले स्टार टॉक कार्यक्रम शिक्षक और विद्यार्थी दोनों के लिए आयोजित होते हैं. हर वर्ष स्टार टॉक हिन्दी कार्यक्रम की संख्या में वृद्धि हो रही है. अमेरिका के भारतीय  समुदाय में जैसे जैसे यह जानकारी फैल रही है कि सरकार विदेशी भाषा के शिक्षण को प्रोत्साहित कर रही है, भारत वंशियो को यह समझने में देर नहीं लगती कि उनके बच्चों को हिन्दी कार्यशालाओं में भेजना लाभदायक है. हिन्दी के प्रति एक नई जागरूकता की लहर दौड़ रही है. परिणाम स्वरुप लोग हिन्दी को भारतीयता का पर्याय मानने लगे हैं और हिन्दी कार्यशालाओं को समर्थन मिल रहा है. अकेले न्यू जर्सी में ही चार कार्यक्रम चल रहे हैं. इन सभी कार्यक्रमों में भारतीय मूल के माता पिता अपने बच्चों को पढने के लिए भेजते हैं, भले ही उनकी मातृभाषा हिन्दी के आलावा कोई अन्य भाषा हो, क्यों कि भारतीय आप्रवासियों के लिए भारतीयता की पहचान बनाये रखना ज्यादा ज़रूरी है. भाषाई विवाद भारत में भले ही सुलगता हो, अमेरिका में गौड़ हो चुका है. भारतीय परिवारों  में मराठी, गुजरती, तेलुगु, तमिल और मलयालम बोली जाती है लेकिन हिन्दी के माध्यम से हम अपनी पहचान रेखांकित करते हुए अमेरिकी मुख्य धारा से जुड़ रहे  हैं. सौभाग्य से अमेरिकी सरकार समझ चुकी है कि भारतीय मूल का बालक अगर अपनी भाषा से जुड़े बिना बड़ा होगा तो वह एक संपूर्ण अमेरिकी नागरिक नहीं बन सकता. और आज के ग्लोबल विल्लेज में वही सफल हो सकता है जिसे अंग्रेजी के अलावा अपनी भाषा और संस्कृति की पहचान हो.  

भारत का शासक वर्ग इस सत्य को कब समझेगा?


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