क्या हिंदी से जीविकोपार्जन संभव है? -अशोक ओझा
जब भी हिंदी की प्रगति पर चर्चा होती है, यह प्रश्न ज़रूर पूछा जाता है-क्या हिंदी से जीविकोपार्जन संभव है? भारत की अर्थ व्यवस्था में अंग्रेजी का ज्ञान रोजगार की शर्त बन गया है और हिंदी की प्रगति के लिए उसका रोजगारोन्मुख होना के ज़रूरी शर्त! गौर से देखें तो आज के युग में इंटरनेट की क्रांति ने हिंदी भाषा शिक्षण को नया आयाम दिया है, और यदि हिंदी पढ़ने-पढ़ाने वाले लोग प्राद्योगिकी के इस क्रांतिकारी दौर की उपलब्धियों का लाभ उठायें तो हिंदी ज़रूर रोजगार के अवसर सुलभ करा सकती है। लगभग एक दशक पूर्व अमेरिका में रहते हुए मैं हिंदी पढ़ाने के जिस कार्यक्रम से जुड़ा उसके कारण मुझे पूर्ण तो नहीं, पर आंशिक रोजगार अवश्य प्राप्त हुआ। आज यह कहते हुए गर्व महसूस करता हूँ कि नब्बे के दशक में अमेरिका प्रवास के पूर्व हिंदी ही मेरे जीविकोपार्जन का माध्यम रही। चाहे वह दो से अधिक दशकों तक पत्रकारिता के जरिए हो, या डाक्यूमेंट्री फिल्मों के रचनाकार के रूप में रही हो। हिंदी रोजगारोन्मुख होने में पूर्ण रूप से सक्षम है-अपनी इस धारणा का समर्थन करते हुए आज उन दिनों को याद करता हूँ, जब मैं अमेरिका में अंग्रेजी के सहारे जीविकोपार्जन करता था, लेकिन कुछ वर्षो बाद उस दौर का समापन हुआ और मैं हिंदी शिक्षण के उस कार्यक्रम से जुड़ गया जिसे 'स्टारटॉक' के नाम से जाना जाता है।
अमेरिका में रहते हुए करीब पंद्रह वर्ष हो चुके थे। न्यू यॉर्क शहर के आठवें एवेन्यू और 14 स्ट्रीट के कोने वाली इमारत, जिसका नम्बर 111 था, उसकी नौवीं मंजिल पर कार्य करते हुए तीन वर्ष बीत चुके थे।बार्न्स एंड नोबल नामक प्रकाशन संस्थान के ऑनलाइन पोर्टल पर समीक्षा संपादक या 'रिव्यु एडिटर' के रूप में कार्य करने के लिए मुझे एक क्यूबिकल मिला था, जहाँ कंप्यूटर पर दिन भर पाठकों की समीक्षाएं पढ़ कर उन्हें वेब साइट पर अपलोड करने का काम करता था। 15 वर्षों के जीवन काल के दस वर्ष इसी कम्पनी में बिताए, सन 2000 में न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए वहाँ नौकरी मिल गयी थी, जिसे पाकर इतना संतोष था कि अमेरिका में जीविकोपार्जन का सम्माजनक श्रोत प्राप्त हो गया था, जिसे अपनी क्षमतानुसार बचा कर रखना चाहता था ।मुंबई में जीवन अधिक व्यवस्थित और सुचारू था जिसे छोड़ कर अमरीका का रूख किया था, सन 1995 में । अमेरिकी प्रवास के प्रारम्भिक पाँच वर्ष संघर्ष भरे थे, उन संघर्षमय दिनों का व्योरा फिर कभी, फ़िलहाल हिंदी शिक्षण के नए दौर की पृष्ठभूमि पर चर्चा कर लें ।
ई-कामर्स के प्रारम्भिक दिनों में बार्न्सएंडनोबलडॉटकाम एक नया प्रयोग था जिसका उद्देश्य पाठकों को कम्प्यूटर का सहारे ऑनलाइन पुस्तक ख़रीदने का अवसर सुलभ कराने और कम से कम समय में उनके घर तक पहुँचाने का कार्य प्रदान करना था । इक्कीसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में कम्पनी पूरे अमेरिका में अपने आकर्षक किताब की दूक़ानों के लिए ख़ासी लोकप्रिय थी ।प्रमुख राज्यों में लगभग पाँच हज़ार बार्न्स एंड नोबल बुक स्टोर ग्राहकों को बेरोकटोक मनपसंद पुस्तकें पढ़ने और दूकान के लाउन्ज में आराम करने के लिए सुखद अवसर प्रदान करने के लिए जाने जाते थे । प्रत्येक स्टोर में स्टारबक्स ब्राण्ड के कॉफ़ीशाप उच्च क़िस्मों की कॉफ़ी का आनंद देने के लिए खुले रहते थे ।यह सिलसिला आज भी है, लेकिन दो दशक पहले बात कुछ और ही थी ।बार्न्स एंड नोबल बुक स्टोर युवा वर्ग के जीवन दर्शन को परिभाषित करते थे ।बार्न्सएंडनोबलडॉटकाम उस जीवन दर्शन को डिजिटल वर्ल्ड में प्रत्यारोपित करने के लिए प्रयत्नशील था ।दुर्भाग्यवश नए नए प्रयासों के बाद भी ऑनलाइन पोर्टेल कम्पनी के लिए महँगा साबित हुआ और अमेरिकी पूँजीवादी परंपरा के मुताबिक़ उसके कर्मचारियों की निर्दयता पूर्वक छँटनी होने लगी । नयी सदी के प्रथम दशक की समाप्ति तक समीक्षा सम्पादक का पद भी टेकनोलोज़ी के सुपुर्द करने का निर्णय किया गया ।
सन 2000 में बॉर्नसएंडनोबलडॉटकाम के ग्राहक सेवा विभाग में टीम सदस्य के रूप में नौकरी शुरू की। कुछ महीनों बाद टीम प्रमुख के रूप में पदोन्नति हो गयी। अमेरिकी जीवन की यह नयी अनुभूति थी घर से ६० मिल ड्राइव कर कार्यालय पहुंचना, और शाम को घर लौटना। मैंने मुत्सीबिशी स्पोर्ट कर खरीद ली थी जिसे न्यू जर्सी के पार्क वे पर रोज दौड़ाना रोमांचक था। कुछ ही दिनों में रास्ते के अनेक मोड़ हथेली की रेखाओं की तरह परिचित हो गए थे जिन्हें तेज़ी से पार कर आगे बढ़ जाना कई बार दुर्घटनाओं से बचने के लिए आवश्यक था। काम पर मैं एक तरफ़ ई-कामर्स की नई परम्पराओं से परिचित हो रहा था कि ग्राहकों की समस्याओं से कैसे निपटना चाहिए और दूसरी तरफ कंपनी के गोदाम की कठिनाइयों को समझते हुए, चुनौती पूर्ण व्यावसायिक परिस्थितियों पर काबू करना चाहिए। मेरे पास दस डॉलर तक माफ़ करने की छूट थी, इस अधिकार का उपयोग कर अक्सर झगड़ालू ग्राहकों से जान छुड़ाता था। कम्पनी ग्राहक सेवा की नयी तरकीबों के बारे में सहकर्मियों को निरंतर प्रशिक्षण प्रदान करती, साल के आख़िर में क्रिसमस की दावतें होतीं, सभी कर्मियों को उपहार दिए जाते और सालाना बोनस भी मिलते ।कोशिश यह थी कि ग्राहक सेवा में लगे विभाग के सभी कर्मी प्रसन्न रहें और ज़्यादा से ज़्यादा पुस्तकें बेचने में सक्षम हों । पुस्तकों की बिक्री से सम्बंधित सहकर्मियों की टीम का प्रमुख होने के नाते मैं जहाँ तक हो सकता अपनी टीम को प्रोत्साहित करता और कम्पनी की बेहतर छवि अपने साथियों के समक्ष प्रस्तुत करता रहता । इस दौरान मेरी दोस्ती जैक से हुई जो मूलतः आइवरी कोस्ट के निवासी थे, फ़्रेंच पर उनका अच्छा ख़ासा अधिकार था, उनकी पत्नी पोलैंड की थीं ।गर्मियों में अपने घर बुलाते, और यार्ड में बार-बे-क्यू के साथ बीयर का दौर चलता रहता ।जैक को भारत के बारे में जानने की बहुत उत्सुकता रहती ।एक बार जब वे सपरिवार घर आए तो मेरा कुर्ता देख कर प्रभावित हुए और कहा अगली बार मेरे लिए लाना ।मैंने उनकी इच्छा पूरी की जिसके लिए जैक ने मुझे ४० डॉलर दिए । हम एक दूसरे के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने लगे। अमेरिका में वर्षों बाद पहली बार कोई दोस्त मिला था जो अपनी तरह अश्वेत था और बराबरी के स्तर पर बातचीत करने का माहौल पैदा करता था। दूसरी शिफ़्ट में काम पर आते थे । वे सुबह में एक स्कूल में गणित के शिक्षक के रूप में कार्य करते थे, और स्कूल छूटने पर दूसरी शिफ़्ट में बॉर्नसएंडनोबलडॉटकाम की नौकरी करने आते । अमेरिका में दो या तीन नौकरी करना सामान्य बात है। आप सोचेंगे, दो और तीन नौकरी करने वाले काफ़ी धन काम लेते होंगे! मैं कहूँगा कि ऐसा नहीं है ।हाँ, आपके पास ख़र्च करने के लिए अतिरिक्त पैसे तो हो जाते हैं, आप फ़ैन्सी होटल में सपरिवार जाने, ब्राण्ड उत्पादनों को ख़रीदने, और थोड़ी महँगी गाड़ी में घूमने के क़ाबिल तो हो जाते हैं, लेकिन सचमुच अमीर नहीं हो जाते । यह सौभाग्य भारतीय मूल के डॉक्टर, डंकन डोनट्स, सेवन एलेवन और गैस स्टेशन और रेस्तराँ मालिकों को प्राप्त होता है । न्यू जर्सी या अन्य प्रदेशों में परचुन के दूकानदार या पेट्रोल पम्प के मालिक बी एम डब्लू, या मर्सिडिस में अक्सर घूमते मिलेंगे।
जैक अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ ख़ुश थे ।दो जॉब करने के पीछे उनका यह उद्देश्य था कि बढ़ते परिवार के लिए बड़ा मकान ख़रीद ले ।उनका यह उद्देश्य कुछ वर्षों में पूरा भी हुआ, लेकिन तब तक जैक बॉर्नसएंडनोबलडॉटकाम का जॉब को छोड़ चुके थे, और मेरा तबादला न्यू यॉर्क शहर में कम्पनी के मुख्यालय में समीक्षा सम्पादक के रूप में हो गया था । हम दोनों की दोस्ती को फलनेफूलने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं मिले ।
न्यू यॉर्क शहर नए वर्ष के आगमन के लिए सज धज रहा था ।पाँचवे एवेन्यू की फ़ैशनबले दूक़ानों के बाहर शीशों के भीतर रंगीन रोशनी की जा रही थी ।जर्नल स्क्वेर स्थित मेसी'स के विशाल शॉपिंग माल में क्रिसमस थीम की तस्वीरें सजायी जा रही थीं। 'कोच', 'डोएर', 'एलिज़ाबेथ आर्डेन' जैसे प्रसिद्ध ब्राण्ड के इत्र और सौंदर्य प्रसाधन लुभावने पैकिजिंग में बंद कर डिस्प्ले किए जा रहे थे । ब्रॉडवे और सातवें एवेन्यू के बीच आने जाने के लिए एक शार्ट कट है-मेसी'स की इमारत में घुस कर फैशनेबल स्टॉल से गुजरते हुए! यह एक व्यापारिक प्रचार साधन भी है क्यों कि शाम को ऑफिस से घर लौटते हुए लोगों को नए नए आकर्षक उपहार पैकेट खरीदने के लिए लुभाया जा सकता है। रास्ते खड़े ब्राण्ड प्रचारक लोगों को इत्र की एक फुहार कलाई में संजोने के लिए उत्साहित करते हैं। अमेरिकी शहरों के माल में यह प्रचार तकनीक हर जगह अपनायी जाती है। शॉपिंग माल के बीचोबीच हो कर आम रास्ता भी यहाँ के सामजिक जीवन का अंग है। स्टॉल पर नमूने के परफ्यूम बोतल इसीलिए रखे होते हैं किआप चाहें तो अपने ऊपर छांटते हुए चले जा सकते हैं। ।मैनहट्टन के हेराल्ड स्क्वायर स्थित मेसी'स की दूकान न सिर्फ पर्यटकों के लिए आकर्षण स्थल है, यह अमेरिकी सभ्यता की पहचान भी है। हर वर्ष ४ जुलाई को अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस पर मैनहट्टन की परेड मैसी परेड के नाम से जानी जाती है। क्रिसमस के दौरान यहाँ की सजावट देखने दूर दूर से लोग आते हैं।
वर्ष 2009 के आगमन के तीन दिन पूर्व यानी 28 दिसम्बर को जब मैं अपने क्यूबिकल पहुँचा तो कम्पनी के मानव संसाधन प्रमुख का संदेश इंतज़ार कर रहा था। मानव संसाधन प्रमुख ने मुझे निर्देश दिया था की कंप्यूटर खोलने के पूर्व उनसे मिल लूँ। उनके कार्यालय में पहुँचते ही विनम्रता पूर्वक मेरा स्वागत किया गया, और मुझे कुछ डॉक्युमेंट दिए गए इस हिदायत के साथ कि अपने वक़ील को दिखा सकता हूँ। मुझे घर जाने को कहा गया, और इस सूचना के साथ कि क्यूबिकल से मेरा सामान मेरे घर भजवा दिया जाएगा । मुझे कुछ भी कहने का अवसर नहीं मिला, यह भी नहीं कि 'फ़िलहाल मुझे नौकरी की ज़रूरत है'। मैंने अपनी सीट की तरफ़ रूख किया, रास्ते में एक टीम सदस्य मिली। मुझे देखते ही उसकी आँखों में आँसू भर आये। वह रोने जैसी थी। मुझे उसकी सहानुभूति पर आश्चर्य हुआ। एक तो अमेरिका में नौकरी से निकला जाना सामान्य बात है, दूसरे अमेरिकी लोग भी रोते हैं, इसका अनुभव पहले नहीं हुआ था। उस दिन लगभग एक सौ कर्मियों को मानव संसाधन विभाग ने बुलाया था यह बताने के लिए कि वे सब घर जा सकते हैं। कुछ सप्ताह बाद पता चला कि मेरे विभाग प्रमुख को भी मेरे रास्ते पर चलना पड़ा, लेकिन कम्पनी के एक निदेशक ने उनके समर्थन में लिंक आई डी वेब साइट पर प्रशस्ति भेजी थी जिसे बल पर शायद उन्हें कोई और नौकरी मिल गयी होगी। अनेक शहरी क्षेत्रों की तरह न्यू यॉर्क में भी उच्च पदों पर कार्यरत लोगों की परस्पर मदद के लिए यह एक सपोर्ट सिस्टम बना हुआ है ।
उस दिन न्यू जर्सी ट्रैंज़िट की शाम छः बजे वाली ट्रेन में बैठकर अपने निवास नगर एडिसन उतारा तो लेने के लिए पत्नी के साथ बेटी भी आयी थी । मेरे उतरा हुआ चेहरा देख कर वे भाँप गए कि कुछ अनहोनी हुई है। गाड़ी में बैठने के बाद मैंने बताया: जीवन का एक और दौर समाप्त हुआ है, अगला दौर कैसा होगा, देखना है! यह कहते हुए मैं ज़रा भी उत्तेजित नहीं था, ना ही मेरे चेहरे पर निराशा और असहायता की गहरी छाया थी। सिर्फ उदासी थी। यह देख कर पत्नी और पुत्री आश्वस्त हुए, (ऐसा उन्होंने बाद में बताया) और जीवन के साठवें वर्ष की तरफ़ बढ़ते हुए, संघर्ष का एक और दौर नए वर्ष में मेरी प्रतीक्षा कर रहा था।
नौकरी छूटने का एक अर्थ था बेरोज़गारी-यह नौकरी जीविको पार्जन की न्यूनतम ज़रूरतें पूरी करती थी- घरलू सुविधाओं, बिजली, पानी, टैक्स आदि के भुगतान में सहायक थी। लेकिन यह नौकरी मुझे अपने आप से दूर कर रही थी। रोज़ प्रातः न्यू जर्सी से न्यू यॉर्क जाते हुए नेवार्क शहर में ट्रैन बदलना, वहां के प्रतीक्षालय में बेंच पर न बैठने की कोशिश करना, क्यों कि बेंच इतने गंदे होते थे कि उनकी दरारों में खटमल या तिलचट्टों के बच्चे ज़रूर होंगे। तो आप यह न सोचें कि अमेरिका में नागरिक सुविधाएँ फाइव स्टार होती हैं।न्यू यॉर्क शहर की एक ऊँची इमारत के एक कोने में मशीन के एक पुर्ज़े की तरह कार्य करना, फिर शाम को न्यू जर्सी की ट्रेन में बैठ कर सुबह की यात्रा को रिवर्स गियर में पूरा करते हुए, अपने निवास नगर एडिसन स्टेशन पर उतरना, जहाँ पत्नी कार में बैठी मेरा इंतज़ार कर रही होती, अमेरिका के उप नगरों में रहने वाले हर मध्य वर्गीय इन्सान की दैनन्दिनी है। आप चाहें तो उनकी तुलना चर्चगेट से विरार जाने वाले मुम्बईवासी के जीवन से या दिल्ली के राजीव चौक से गाज़ियाबाद या गुड़गांव के मेट्रो यात्री से कर सकते हैं। घर आकर टीवी देखना और रात के भोजन के बाद सो जाना, प्रातः फिर उठ कर कल के रूटीन को दोहराना, शायद दुनिया के हर सफल अर्थ तंत्र की कहानी है । वे लोग खुशकिस्मत हैं, जो इस रुटीन में बंध चुके हैं।शायद अमेरिकी व्यवस्था हर नौकरीपेशा व्यक्ति से यही अपेक्षा करते है, ताकि इस देश की अर्थव्यवस्था सुचारू ढंग से चलती रहे।अधिक से अधिक लोग कार्य रत रहें, बेरोज़गारी न्यूनतम स्तर पर रहे, लोग जो कमाएँ उसे शॉपिंग माल की चमकीली ब्राण्ड दूक़ानों में ख़र्च करते रहें, इसी नियम का पालन एक सफल अर्थ तंत्र के लिए आवश्यक है । यही तो अमेरिकी ड्रीम यानी सपने को पाने की शर्त है! यदि इस ढाँचे से बाहर गए, अगर आपने नियोक्ता की अपेक्षाओं को दरकिनार करने की कोशिश की तो आपसे मुक्ति पाने में उसे देर नहीं लगेगी । एक बेरोज़गार के लिए क़ानून और सरकार द्वारा निर्धारित रोज़गार दफ़्तरों के दरवाज़े खुले हैं ।लेकिन वहाँ जाने का अर्थ है, आप रोज़गार बाज़ार में अपनी क़ाबलियत साबित करने के लिए कुछ नया हुनर सीखिए, और नए नियोक्ता के पास अपनी क़ाबलियत बेचने का हर सम्भव प्रयास कीजिए ।यदि ख़ुशक़िस्मती से इकोनॉमी यानी अर्थव्यवस्था अच्छी रही, तो हो सकता है, छह महीने में आपको वांछित काम मिल जाए । लेकिन बदक़िस्मती से छह महीने में आपको नया काम नहीं मिला तो समझिए आपकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लग गया, जैसे जैसे बेरोज़गारी के दिन लम्बे होते गए, नौकरी पाने की सम्भावनाएँ भी क्षीण होती जाएँगी, हो सकता है कि बेरोज़गार भत्ता पाने की अवधि समाप्त होने तक, जो कि एक वर्ष की होती है, आपको ऐसा काम स्वीकार करना पड़े जो आपकी क़ाबलियत के अनुरूप न हो ।लेकिन बुरा मत मानिए, अमेरिका में पढ़े लिखे अश्वेत अक्सर अपनी शैक्षणिक योग्यता से बहुत नीचे स्तर वाले काम करने को मजबूर होते हैं, यानी 'अंडर एम्प्लॉमेंट' अमेरिका के लिए आम बात है ।
बॉर्नसएंडनोबलडॉटकाम की नौकरी के दिनों में जैक से प्रेरित होकर मैंने हाई स्कूल में शिक्षक बनने का लाइसेंस प्राप्त करने के लिए तैयारी शुरू कर दी । इसके लिए मुझे न्यू यॉर्क विश्व विद्यालय से प्राप्त समाज शास्त्र की बैचलर डिग्री काम आयी। परीक्षा पास करने के लिए न्यू जर्सी शिक्षा विभाग ने जांच पड़ताल की और पाया कि मुझे अमेरिकी इतिहास विषय में अतिरिक्त क्रेडिट प्राप्त करना आवश्यक है। विभाग के अनुमोदनों का पालन करते हुए, मैं न्यू जर्सी के कीन विश्व विद्यालय से फाल सेमेस्टर में नौ क्रेडिट कोर्स में दाखिला ले कर उत्तीर्ण हुआ। चूँकि मैं 'बेराजगार' की श्रेणी में था मुझे इस पढ़ाई के लिए कोई शुल्क नहीं देना पड़ा, अन्यथा शायद मैं उन कोर्सेस को नहीं ले पाता। राज्य सरकार बेरोजगार लोगों को छह महीने तक नई नौकरी के प्रशिक्षण के लिए इस प्रकार की मदद करती है। मुझे शिक्षा विभाग से उच्च विद्यालयों में पढ़ाने का लाइसेंस प्राप्त हो गया। इस दिशा में अगला कदम होता, किसी स्कूल में अस्थायी नौकरी के लिए प्रयत्न करना। ऐसा नहीं कि मैंने उसकी कोशिश नहीं की, लेकिन सफलता नहीं मिली। मेरे भाग्य में कुछ और ही था।
एडिसन स्कूल बोर्ड के कार्यालय में जा कर मैंने अपना नामांकन वैकल्पिक शिक्षक ('सब्सटीच्यूट टीचर') के रूप में करा लिया। वैकल्पिक शिक्षक की नौकरी अस्थाई या कह लें आपकी मर्ज़ी पर है, जिस दिन चाहें स्कूल जाने के लिए साइन अप करें, जब ना चाहें, ना करें। उन दिनों एडिसन में वैकल्पिक शिक्षक को एक दिन कार्य करने के लिए लगभग ८० डॉलर की कमाई होती थी। ’वैकल्पिक शिक्षक' की सीमित भूमिका में जब आप स्कूल डिस्ट्रिक्ट के किसी स्कूल में जाने की सहमति भेजते हैं, उस दिन प्रातः स्कूल पहुँच कर किसी अनुपस्थित शिक्षक के दिन भर के कार्यों की जिम्मेदारी आपकी दी जाती है। उस दिन आपके अपने अनुभव इस आपको सैकड़ों किशोर किशोरियों की उत्सुकता, उद्दंडता, और उनके आक्रामक रवैये से मुक्ति दिला सकते हैं। वर्षों तक वैकल्पिक शिक्षक के रूप में कार्य रत रहने के बाद मेरा अनुभव यह हुआ कि अमेरिकी स्कूल व्यवस्था में सर्वाधिक राहत दिलाने की सम्भावना किसी कक्षा में ही हो सकती है, सर्वाधिक अपमानित होने की सम्भावना भी किसी कक्षा में ही हो सकती है,हालाँकि आपकी सफ़ेद चमड़ी न होने का मुआवजा स्कूल के फैकल्टी रूम या कार्यालय में ही हो सकता है। यदि आपने स्कूल नियमों का उल्लंघन किया तो आपको बचाने वाला कोई नहीं होगा, सीधे अपने घर का रास्ता नापिये।
मैं न्यू यॉर्क के भारतीय प्रदूतावास में, जिसे सरकारी भाषा में कोंसुलावास कहते हैं, अनेक कार्यक्रमों में शामिल होने जाय करता था। 'न्यू यॉर्क से प्रकाशित होने वाले 'इंडियन ऐक्सप्रेस' में सामुदायिक मुद्दों पर लिखने का अवसर भी प्राप्त हो चुका जिसके लिए युवा उद्यमी सुनील हाली का आभारी हूँ। सुनील के साथ सुजीत राजन संपादक के रूप में कार्य करते थे, जो सन २०१९ में एक अन्य पत्र 'देसी टॉक' से जुड़ चुके थे।
अमेरिकी स्कूलों में वैकल्पिक शिक्षक के साथ क्या सलूक होगा, यह विद्यार्थी तय करते हैं ।सम्भावना यह है कि छात्र-छात्राएँ उस दिन ख़ुशियाँ मनाएँ कि रोज़ के उनके शिक्षक गैर हाज़िर हैं। लेकिन यदि वे किशोर किशोरियां उत्सुकता, उद्दंडता, आक्रामक खेल कूद के मूड में आ गए तो भगवन मालिक। ऐसे में वैकल्पिक शिक्षक अपने कौशल का प्रयोग कर उद्दंड छात्रों के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाये, या उन्हें कक्षा में कुछ रोचक बाते बताते हुए उन्हें अनुशासित रखे। संभव यह भी है कि बच्चे आपका भरपूर मज़ाक उड़ाएं। गनीमत इसी में है कि आप इन सब परिस्थितियों को हंसी मज़ाक में उड़ा दें और किसी तरह अगले घंटे करें। वर्षों तक वैकल्पिक शिक्षक के रूप में कार्यरत रहने के बाद मेरा अनुभव यह हुआ कि अमेरिकी स्कूल व्यवस्था में सर्वाधिक अपमानित होने की सम्भावना किसी कक्षा में ही हो सकती है, सर्वाधिक राहत की सम्भावना भी किसी कक्षा में ही हो सकती है यदि छात्र-छात्राओं के मन में आपके प्रति सहानुभूति पैदा हो जाए। इस बीच यदि आपने स्कूल नियमों का उल्लंघन किया तो आपको बचाने वाला कोई नहीं होगा, सीधे अपने घर का रास्ता नापिये।
उन दिनों मैं न्यू यॉर्क के भारतीय प्रदूतावास में, जिसे सरकारी भाषा में कोंसुलावास कहते हैं, अनेक कार्यक्रमों में शामिल होने जाया करता था। 'न्यू यॉर्क से प्रकाशित होने वाले 'इंडियन ऐक्सप्रेस' में सामुदायिक मुद्दों पर लिखने का अवसर भी प्राप्त हो चुका जिसके लिए युवा उद्यमी सुनील हाली का आभारी हूँ।
कोंसुलावास में हो रहे एक हिंदी समारोह में मैंने 'स्टारटॉक' के बारे में सुना। स्कूली बच्चों और कॉलेज विद्यार्थियों को एशिया की अनेक भाषाओँ, जैसे चीनी, अरबी, उर्दू, हिंदी, फ़ारसी, टर्की, आदि को गर्मी की छुट्टियों में पढ़ाने का प्रावधान था। यह अभिनव कार्यक्रम 9-11 के उपरांत अमेरिकी नीतियों में हुए परिवर्तनों का परिणाम था। इस कार्यक्रम के अंतर्गत भाषाई संस्कृति के 'नेटिव स्पीकर' प्रशिक्षित किये जाते थे, ताकि वे अपने समुदाय में या अन्यत्र उन भाषाओँ को विधिवत सिखा सकें।अमेरिका के अनेक शिक्षा संस्थानों, खास तौर पर विश्विद्यालयों में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद आप 'स्टारटॉक' कार्यक्रम का प्रस्ताव सरकार को भेज सकते हैं। प्रस्ताव स्वीकृत होने पर कार्यक्रम आयोजित करने का पूरा खर्च स्टारटॉक प्रशासन प्रदान करता है, जिसमें शिक्षकों के वेतन से लेकर विद्यार्थियों के खाने पीने, उनकी पठन पाठन सामग्री, मेजबान स्कूलों के किराये आदि सभी शामिल हैं।
कोंसुलावास के समारोह में 'स्टारटॉक' कार्यक्रम की जानकारी के बारे में सुन कर मैंने वहां उपस्थित एक वरिष्ठ अध्यापक से पूछा: 'क्या इसमें शामिल हो कर जीविकोपार्जन किया जा सकता है?' उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। आज भी सोचता हूँ-शायद उन्हें इस प्रश्न में एक प्रतिद्वंदी तो नहीं दिखा? मैंने मन ही मन सोचा: 'हिंदी में आजीवन पत्रकारिता की है, क्यों न अब इसके शिक्षण को आजमाया जाय?'
मेरे इसी निर्णय के साथ प्रारम्भ हुई जीवन की एक और यात्रा-हिंदी शिक्षण के जरिए हिंदी का प्रचार-प्रसार करने की!
(अगली बार: युवा हिंदी संस्थान के सहारे हिंदी शिक्षण अभियान की सफलता)