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अमेरिका में रंगभेद के विरोध में हिंसा की लहर

नवीनतम विश्लेषण "जन चौक" में

https://janchowk.com/beech-bahas/voilence-against-the-racial-discrimination-in-usa/

-अशोक ओझा 

 25 मई को अमेरिका में टेलीविज़न चैनेलों पर एक ऐसा दृश्य बार बार देखने को मिला जिसके लिए आम अमेरिका वासी मानसिक रूप से तैयार नहीं था। यह हृदय विदारक दृश्य कुछ ऐसा था: एक पुलिस कार के पास एक अश्वेत (काला व्यक्ति) जमीन पर मुँह के बल गिरा है, उसकी गरदन एक पुलिस अधिकारी के घुटनों के नीचे दबी हुई । दो और पुलिस अधिकारी उसे दबोचे हुए थे । डेरेक शौविन नामक पुलिस अधिकारी ने फ्लॉयड नामक अश्वेत व्यक्ति को अपने घुटनों के नीचे  तब तक दबा कर रखा जब तक कि एम्बुलेंस वहाँ नहीं पहुँची । इस बीच जमीन पर गिरा फ्लॉयड बिफर रहा  था-मैं साँस नहीं ले सकता, माँ, प्लीज--लेकिन पुलिसवालों पर उसकी गुहार का कोई असर नहीं हुआ। फ्लायड का दम घुट रहा था। अस्पताल जाते जाते उसने दम तोड़ दिया।  

फ्लायड की मौत का समाचार फैलते ही पूरे अमेरिका में नस्लवादी भेदभाव और  पुलिस ज्यादती के विरुद्ध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया। मिनियापोलिस शहर में आगज़नी और तोड़फोड़ की घटनाओं के बीच राष्ट्रपति ट्रम्प ने कुछ ऐसा कह दिया जिससे हिंसक आंदोलन और तेज़ हो गए- ‘लूटपाट होती है तो गोलियाँ चलती हैं (व्हेन लूटिंग स्टार्ट्स, शूटिंग स्टार्ट्स)’ । उनका यह ट्वीटर वक्तव्य अश्वेत लोगों के जले पर नमक छिड़कने जैसा प्रतीत हुआ। यह मुहावरा नस्लवाद से सीधा जुड़ता है: साठ के दशक में मार्टिन लूथर किंग जूनियर के नेतृत्व में जब इस देश में नागरिक अधिकारों के लिए जन आन्दोलन चल रहा था उन दिनों मियामी (फ़्लोरिडा) नगर के एक  पुलिस अधिकारी वॉल्टर हेडली ने सन 1967 में नगर में शांति बहाल करने के लिए इस जुमले का प्रयोग किया था-‘व्हेन लूटिंग स्टार्ट्स, शूटिंग स्टार्ट्स’ । हेडली के इस महावरे का नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे नेताओं ने ज़ोरदार विरोध किया था। 

 ट्रम्प ने सफ़ाई दी है कि वे  इस मुहावरे के ऐतिहासिक संदर्भ से अवगत नहीं थे । लेकिन उनके इस ट्वीटर सन्देश को मिनियापोलिस की कांग्रेस प्रतिनिधि इल्हान ओमार (डोमोक्रेटिक) ने हिंसा भड़काने वाला बयान बताया है। इल्हान मिनियापोलिस में बसे सोमालिया के शरणार्थियों के समाज से निकली युवा डेमोक्रेटिक प्रतिनिधि हैं, जो हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव में चुन कर आयी आधे दर्ज़न प्रगतिशील युवा महिला प्रतिनिधियों में से एक हैं । इन महिला जन-प्रतिनिधियों को  इंगित करते हुए ट्रम्प ने एक बार कहा था-इन लोगों को अपने देश चले जाना चाहिए। 

'मैं सांस भी नहीं ले सकता (आई कैंट ब्रीध)’- फ्लॉयड के मुँह से निकली यह वेदना, रंग भेद और नस्लवाद का प्रतीक बन गयी है। मिनियापोलिस-सेंट पॉल के जुड़वें नगर से प्रारम्भ हुआ विरोध प्रदर्शन अमेरिका के अनेक नगरों को लूटपाट और आगज़नी बन कर हिंसा के आग़ोश में झोंक रहा है। लूटपाट और आगज़नी के दृश्यों को देख कर न्यू यॉर्क, लॉस एंजेल्स, डलास, मियामी, डेट्रॉएट, सीएटल, वाशिंगटन डी सी सहित अमेरिका के दो दर्ज़न से अधिक शहरों में सैकड़ों प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किये जा चुके हैं। कर्फ्यू लागू है। मिनियापोलिस पुलिस अधिकारी डेरेक शौविन को मिनीसोटा प्रदेश के जाँच ब्यूरो द्वारा गिरफ़्तार कर लिए गया है। उसपर ‘हत्या’ के आरोप में मुकदमा चलाया जाएगा, लेकिन मामले से जुड़े अन्य तीन पुलिस वालों पर अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है।  

मिनीसोटा प्रदेश अमेरिका के मध्य-पश्चिम में कनाडा की सीमा से लगा प्रदेश है जिसकी लगभग आधी आबादी मिनियापोलिस-सेंट पॉल के जुड़वें नगर में बस्ती है। वहाँ अफ़्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया से आए शरणार्थी भी बड़ी संख्या में बसाए गए हैं। ‘अश्वेत’ नागरिकों की बड़ी संख्या वाले नगर मिनियापोलिस-सेंट पॉल के मेयर प्रगतिशील विचारधारा के बताए जाते हैं, जिन्हें ट्रम्प ने ‘रेडिकल’ कह कर मज़ाक़ उड़ाया और मिनीसोटा के राज्यपाल से ‘नैशनल गार्ड’ तैनात करने का निर्देश दिया ।

फ्लॉयड की मौत से उपजा विरोध प्रदर्शन तोड़ फोड़ करने वाले तत्वों के लिए सुनहरा मौक़ा साबित हुआ है जिसका सबूत मिशिगन प्रदेश के डिट्रॉट, कैलिफ़ोर्निया के लॉस एंजेल्स, कोलोराडो के डेनवर, टेक्सास के ऑस्टिन आदि नगरों में हुए हिंसक वारदातों से मिलता है जहाँ पुलिस की गाड़ियों, दूक़ानों और शॉपिंग मॉल में आगज़नी और लूटपाट हुई। इन वारदातों में कुछ लोग गोलियों के शिकार भी हुए हैं। कैलिफ़ोर्निया के ओकलैंड में हिंसक प्रदर्शनों के दौरान एक पुलिस अधिकारी की मौत हुई और दूसरा घायल हुआ। अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी सी में जब व्हाइट हाउस के सामने विरोध प्रदर्शन हुआ तब राष्ट्रपति ट्रम्प का ग़ुस्सा आसमान छूने लगा। उन्होंने फ्लॉयड की मौत को दुखद तो कहा, लेकिन राज्यों से  यह भी कहा कि अमेरिका की सेना और राष्ट्रीय पुलिस (नैशनल गार्ड) शांति बहाल करने के लिए तैयार है। 

ट्रम्प के लिए प्रदर्शनकारी ‘ठग’ और लूटेरे हैं । उन्होंने देश भर में शांति क़ायम करने के लिए भयानक ताक़त का इस्तेमाल करने से परहेज़ न करने का फ़ैसला कर लिया है। 

लेकिन देश भर में होने वाले प्रदर्शनों को हिंसात्मक विरोध प्रदर्शन के आइने से नहीं देखा जा सकता । मिनियापोलिस-सेंट पॉल, अटलांटा, न्यू यॉर्क तथा कई अन्य नगरों के मेयर, जो कि ‘अश्वेत’ हैं,  ज़ोर देकर कह रहे हैं कि आज असली मुद्दा है पुलिस बर्बरता और ‘अश्वेतों’ के प्रति ‘दुर्व्यवहार’! हिंसक प्रदर्शन इन मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाते हैं, यह समझना ज़रूरी है। 

अमेरिकी संविधान सभी नागरिकों को, चाहे वे श्वेत हों या अश्वेत, समान अधिकार देता है। दासता का युग अब्राहम लिंकन ने उन्नीसवीं सदी में समाप्त कर दिया था। लिंकन रिपब्लिकन थे। ट्रम्प की पार्टी रिपब्लिकन को अश्वेत विरोधी या ‘व्हाइट सुप्रेमेसी’  विचारधारा का समर्थक क़रार देना भी उचित नहीं। क्यों कि आज अमेरिका में कोई भी खुले तौर पर रंगभेद का समर्थन नहीं करता । प्रशासन, न्यायपालिका, कोंग्रेस, शिक्षा व्यवस्था हर क्षेत्र में ‘अश्वेत’ प्रमुख पदों पर, नीति निर्धारक पदों पर कार्यरत हैं। बराक ओबामा के रूप में देश को ‘अश्वेत’ राष्ट्रपति भी मिल चुका है। निश्चय ही ओबामा के समर्थकों में ‘श्वेत’ नागरिकों, युवाओं, महिलाओं का बड़ा वर्ग शामिल था।इन सब के बावजूद ‘अश्वेत’ जनता के प्रति भेदभाव और पुलिस ज़्यादती कम नहीं हुई।  

लेकिन यह भी सत्य है कि वर्तमान राष्ट्रपति ट्रम्प का मुख्य समर्थक वर्ग ‘श्वेत’ है, जिनमें अनेक ‘व्हाइट सुप्रेमेसी’  विचारधारा के समर्थक भी हैं, और उनके ट्वीट यह संकेत देते हैं कि ट्रम्प इस वर्ग का समर्थन महत्वपूर्ण मानते हैं। 

डेमक्रैटिक नेता और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडन, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा तथा अनेक उच्च अधिकारी स्वीकार करते हैं कि अमेरिका में ‘अश्वेत’ नागरिकों के प्रति भेदभाव और पुलिस बर्बरता का दौर अभी थमा नहीं है। कई लोग इसकी ज़िम्मेदारी कुछ बुरे पुलिस अधिकारियों पर डालते हैं और पुलिस महकमे को सामान्यतया जनता का ‘संरक्षक’ और क़ानून-व्यवस्था में यक़ीन रखने वाला प्रशासनिक अंग मानते हैं । लेकिन अमेरिका का राजनीतिक और सामाजिक इतिहास इस बात की गवाही देता है कि  ‘अश्वेत’ नागरिकों के साथ, चाहे वे काले (अफ़्रीकी-अमेरिकी) या भूरे (एशियाई, लातिनी) हों, सामाजिक और प्रशासनिक भेदभाव की कहानी ‘श्वेत प्रभुत्व (व्हाइट सुप्रेमेसी)’ की भावना से जुड़ी हुई है, जिसके तार सत्तर वर्ष पुराने ‘कु, कलाक्ष क्लान’ के आतंकवादी चेहरे से जुड़ते हैं। इस डरावनी संस्था के सदस्य अमेरिका को ‘श्वेतों’ का देश मानते थे और इस विचारधारा के विरोधी ‘अश्वेतों’ को दंडित करने में संकोच नहीं करते थे। ट्रम्प के शासन काल में ‘श्वेत प्रभुत्व (व्हाइट सुप्रेमेसी)’ में विश्वास रखने वालों के प्रति सहानुभूति का माहौल दिखाई पड़ा है और ‘अश्वेत’ नागरिकों के प्रति भेदभाव के  कई उदाहरण सामने आए हैं। यह कहना सही होगा कि पुलिस ज़्यादती के शिकार लोगों में ‘अश्वेतों’ की संख्या सर्वाधिक रही है। साठ के दशक से पूर्व और उसके बाद भी अमेरिका के ग्रामीण इलाक़ों से ‘श्वेत’ जनता जब शहर की तरफ़ बेहतर आर्थिक लाभ के लिए विस्थापित हो रही थी, पुलिस उनकी रक्षक होती थी, अफ़्रीकी-अमेरिकी लोगों के प्रति ‘लिंचिंग’ यानी सार्वजनिक हत्या का दौर ज़ोरों पर था, दक्षिण में ‘कु, कलाक्ष क्लान’ और अन्य ‘श्वेत प्रभुत्व (व्हाइट सुप्रेमेसी)’ के सिद्धांत को मानने वाली संस्थाओं का आतंकी बोलबाला ज़ोरों पर था, उन दिनों पुलिस और न्याय प्रशासन ‘अश्वेतों’ के प्रति हो रहे अत्याचारों को नज़र अन्दाज़ करता था। परोक्ष तौर पर अमेरिकी पुलिस ‘श्वेतों’ का संरक्षक रही है ।  

साठ के दशक के बाद रंगभेद और ‘अश्वेतों’ के भेदभाव के कारण मियामी, डिट्रॉट आदि नगरों में दंगे और लूट पाट की घटनाएँ हुईं, दर्जनों ‘अश्वेत’ पुलिस की गोलियों के शिकार हुए, हज़ारों गिरफ़्तार भी हुए । इन सभी घटनाओं में पुलिस ज़्यादती के कई मामले सामने आए। अधिकांश मामलों में आरोपी पुलिस अधिकारी अपराध से बरी कर दिए गए। लॉस एंजेल्स में पुलिस द्वारा एक ‘अश्वेत’ नागरिक की पिटाई के विरोध में 1992 में दंगाइयों ने हप्ते भर तक हिंसक वारदातों को अंजाम दिया जिसमें 50 लोग मारे गए और दो हज़ार से ज़्यादा ज़ख़्मी हुए थे । 

दशकों तक ‘अश्वेतों’ के प्रति अत्याचार से लड़ने के लिए ‘ब्लैक लाइव्ज़ मैटर’ नामक संस्था का। जन्म हुआ । ‘अश्वेतों’ के प्रति ज़्यादती के विरोध में, ज़्यादती करने वाले ‘श्वेत’ नागरिक और पुलिस अधिकारी वर्ग शामिल रहे हैं। फ़रवरी 2012 में निहत्थे अश्वेत ट्रेवॉन मार्टिन की हत्या के आरोपी जॉर्ज ज़िमरमैन एक साल बाद न्यायिक अदालत द्वारा बरी कर दिया  गया। 2014 में फेरगुसन (मिज़ुरी) में माइकल ब्राउन और न्यू यॉर्क में एरिक गार्नर की मौतें ‘अन्याय की इस कहानी को आगे बढ़ाती गयीं। न्यू यॉर्क में एरिक गार्नर की मौत भी पुलिस द्वारा दबोचे जाने के कारण हुई थी। तब गार्नर ने गुहार लगाई थी, ‘मेरा दम घुट रहा है’। 

‘ब्लैक लाइव्ज़ मैटर’ की तरफ़ से उन अनगिनत लोगों को न्याय दिलाने के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित किये गए जो पुलिस ज़्यादती और पुलिस की गोलियों के शिकार हुए ।  क्लीवलैंड (ओहायो) में 12 वर्षीय तामीर खेल रहा था। पुलिस को ग़लतफ़हमी हुई कि उसके पास बंदूक़ है, और उस पर गोली चला दी। ऐसे कितने नाम गिनाए जा सकते हैं: टोनी रॉबिन्सन, ऐन्थॉनी हिल, एरिक हैरिस, वॉल्टर स्कॉट, जोनथन, जेरमी, कोरी इत्यादि, जो नस्ली भेदभाव के शिकार हुए। 2015 में बाल्टीमोर (मेरी लैंड) में फ़्रेडी ग्रे की हत्या के विरोध में हिंसक दंगे भड़के थे।

लगभग अठारह लाख कोरोना संक्रमित लोगों और एक लाख चार हज़ार कोरोना संक्रमित लोगों की मौतों के कारण आज अमेरिका में मातम का माहौल है। मार्च के बाद से बेरोजगार हुए तीस लाख लोगों के राहत देने के प्रयास फेडरल (केंद्रीय) और राज्य सरकारें कर रही हैं। देश के सभी 50 राज्यों में अर्थ व्यवस्था धीरे धीरे खोलने के प्रयास भी शुरू हो गए हैं। लेकिन विरोध प्रदर्शन के इस नए दौर में आशंका जतायी जा रही है कि कहीं महामारी दुबारा ना फैले। अटलांटा की मेयर केशा बॉटम ने सभी प्रदर्शनकारियों से कहा है कि वे कोरोना जाँच ज़रूर करा लें। आख़िर सड़क पर उतरे लोगों की भीड़ सोशल डिसटेंसिंग के नियमों का पालन तो नहीं कर रही थी , न ही सभी प्रदर्शनकारी मास्क ही पहने थे। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अगले दो सप्ताह बाद महामारी का नया प्रकोप देखने को मिल सकता है ।