21st Century Hindi

View Original

अमेरिका में हिंदी शिक्षण: सफलता और चुनौतियाँ -अशोक ओझा

-अशोक ओझा, अध्यक्ष, युवा हिंदी संस्थान, हिंदी संगम प्रतिष्ठान, अमेरिका 

 

लगभग आठ वर्षों से हिंदी शिक्षण के लिए सुनियोजित्त योजना के तहत कार्य करने के बाद यह महसूस हो रहा है कि हिंदी प्रसार की दिशा में अनेक उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं। इन दिनों सोशल मीडिया, ख़ास तौर पर फेस बुक पर न्यू जर्सी के कुछ कार विक्रेताओं ने अपना प्रचार हिंदी में करना प्रारम्भ किया है। न्यू जर्सी में होंडा, टोयोटा, निसान जैसे मध्यम वर्ग के  लोकप्रिय वाहनों के विक्रेताओं ने भारतीय मूल के वासियों को आकर्षित करने के लिए अपना प्रचार अभियान क़रीब छह माह पूर्व दबे पाँव शुरू किया, शायद बाज़ार की प्रतिक्रिया जानने के लिए। आज बी एम डब्ल्यू के शोरूम से हिंदी में प्रचार वीडियो  देख सुन कर ऐसा प्रतीत होता है कि निश्चय ही विक्रेता यह समझ गए हैं कि भारतीय मूल के संपन्न समाज में अंग्रेजी का नहीं, हिंदी का बोलबाला है। इस तथ्य का माप दंड तो हमारे पास नहीं है, लेकिन जिस तरह से भारतीय माता पिता अपने बच्चों को निसंकोच हिंदी कार्यक्रमों में पढ़ने के लिए भेज रहे हैं, उससे हिंदी की लोकप्रियता की एक झलक प्राप्त होती है। एक दशक पूर्व जब अमेरिका, विशेष तौर पर भारतीय मूल के निवासियों की सर्वाधिक आबादी वाले न्यू यॉर्क, न्यू जर्सी, टेक्सास, कैलिफ़ोर्निया आदि प्रदेशों में, हिन्दी के पठन-पाठन ​को इक्कीसवीं सदी की ज़रूरतों के अनुरूप ढालने  की बात चल रही थी तो हमने यह आशा नहीं की थी कि अमेरिका में व्यापार के क्षेत्र में हिंदी का प्रवेश हो सकेगा। 

युवा हिंदी संस्थान की स्थापना 

सन 2009 में अमेरिकी सरकार की एक शिक्षा सम्बन्धी योजना, जिसे स्टारटॉक के नाम से जाना जाता है, तीन साल पुरानी हो चुकी थी। फिलाडेल्फिया के आई वी लीग विश्वविद्यालय-यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिलवानिया-में दक्षिण एशिया केंद्र में हिंदी प्राध्यापक दम्पति डॉ विजय और सुरेन्द्र गंभीर के नेतृत्व में दो सप्ताह का हिंदी शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किया गया जिसमें न सिर्फ अवैतनिक तौर पर  हिंदी पढ़ाने वाले ​समाज सेवियों को भागीदार बनाया गया, बल्कि ऐसे हिंदी प्रेमियों को भी आवेदन की सुविधा प्रदान की गयी जो हिंदी शिक्षक बनने को उत्सुक थे। ​पत्रकारिता पेशे से लम्बे समय से जुड़ने के बाद मेरा झुकाव हिंदी पढ़ाने की तरफ था, लेकिन न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय मामलों में शिक्षा प्राप्त करने के बाद मैं समाज शास्त्र का सरकारी मान्यता प्राप्त शिक्षक बन सका। विजय और सुरेन्द्र गंभीर तब छत्तीस वर्षों तक यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिलवानिया​ में हिंदी भाषा विज्ञान पढ़ा चुके थे और दोनों ही विश्वविद्यालय से सेवानिवृति की योजना बना रहे थे। उनके निर्देशन में सन 2009 ​के स्टारटॉक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम को पूरा कर हमें महसूस हुआ कि स्टारटॉक पद्धति के तहत हिंदी और उसकी जैसी अनेक विरासत (हेरिटेज) की भाषाओं को स्कूली विद्यार्थियों के लिए आकर्षक बनाया जा सकता है। स्टारटॉक के हिंदी शिक्षण कार्यक्रमों को लागू करने का समय आ चुका था। यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेन्सिलवानिया​ ​​परिसर में ​प्राध्यापक सुरेन्द्र गंभीर के सभापतित्व में युवा हिंदी संस्थान की स्थापना हुई जिसमें मेरे साथ आधे दर्ज़न साथी उत्साह के साथ शामिल हुए। न्यू जर्सी में संस्थान की स्थापना के बाद उसका प्रमुख लक्ष्य था स्टारटॉक हिंदी पाठ्यक्रम को भारतीय समाज में लोकप्रिय बनाना। संस्था की अध्यक्षता मेरे कंधों पर आयी और हम हिंदी कार्यक्रम की रूप रेखा की मंजूरी की प्रतीक्षा करने लगे। 2010 में युवा हिंदी संस्थान का प्रथम स्टारटॉक कार्यक्रम डॉ सुरेन्द्र गंभीर के निर्देशन में अटलांटा शहर में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ,  जहाँ अनुभवी शिक्षकों ने दिन रात मेहनत कर औपचारिक हिंदी शिक्षण की नींव मज़बूत की। 

युवा हिंदी संस्थान को आगामी एक वर्ष के दौरान गैर-लाभ संगठन बनाने की औपचारिक कार्रवाई पूरी कर ली गयी और न्यू जर्सी के हिंदी और गैर हिंदी भाषियों के बीच हिंदी शिक्षण का प्रचार कार्य आगे बढ़ने लगा। डॉ गंभीर हिंदी स्टारटॉक को पूरे अमेरिका में विस्तारित करना चाहते थे, लेकिन संसाधनों के आभाव में हमने व्यावहारिक निर्णय लिया कि प्रति वर्ष चलने वाला यह कार्यक्रम किसी एक स्थान पर निरंतर चलना चाहिए। इसके लिए स्थानीय स्कूल प्रबंधन, जिसे यहाँ, स्कूल डिस्ट्रिक्ट कहते हैं, के साथ सहयोग और संयोजन आवश्यक था। न्यू जर्सी के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी के औपचारिक कार्यक्रम प्रारम्भ हो चुके थे। मेरे प्रयासों से कीन विश्वविद्यालय में कॉलेज विद्यार्थियों के लिए स्टारटॉक कार्यक्रम सन 2010 और 2011 में सफलता पूर्वक संपन्न हुए। इन दोनों कार्यक्रमों का संयोजन, संकलन और निर्देशन मैंने किया जिसके लिए विश्वविद्यालय के प्रेजिडेंट डॉ फ़राही के प्रति आभार प्रगट करने का शिष्टाचार निभाना चाहूंगा। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सुरेंद्र और विजय जी के शैक्षणिक मार्ग दर्शन के फलस्वरूप उन कॉलेज विद्यार्थियों को हिंदी पढ़ाने का कार्य किया जा सका, जो गैर भारतीय यानी नॉन-हेरिटेज  की परिभाषा में आते हैं। इन दो वर्षों में स्टारटॉक भाषा कार्यक्रमों के सफल संचालन के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि युवा हिंदी संस्थान का मुख्य कार्य ऐसी जगह स्थापति हो जहाँ, हिंदी के पौधे को सींचने का उचित वातावरण उपलब्ध हो। पेन्सिलवानिया प्रदेश हमारे पड़ोस में था, जहाँ बेनसेलम शहर के स्कूल डिस्ट्रिक्ट में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से सन 2012 का स्टार टॉक कार्यक्रम मेरे निर्देशन में संपन्न हुआ जिसमें उन परिवारों के बच्चे भी शामिल हुए, जिनके घरों में हिंदी के आलावा अन्य भारतीय भाषा बोली जाती है। 2012 के कार्यक्रम से मेरे सामाजिक अनुभव में विस्तार हुआ। मैंने महसूस किया कि अमेरिका में हिंदी समस्त भारतीय समुदाय को जोड़ने वाली भाषा के रूप में प्रसारित होनी चाहिए, सभी भारतीयों की पहचान की भाषा के रूप में!

फिलाडेल्फिया​ ​​महानगर से करीब 30 मिल दूर स्थित लैंसडेल ​नामक शहर के आसपास के इलाकों में भारतीय मूल के निवासी बड़ी संख्या में रहते हैं। अधिकांश परिवार गैर हिंदी भाषी हैं जिनसे संपर्क साधने के बाद उनके भारत प्रेम और हिंदी प्रेम की जानकारी मिली। अनेक माता पिता चाहते थे कि उनके बच्चों को स्टार टॉक जैसे कार्यक्रमों के तहत औपचारिक हिंदी सिखायी जाय। इसी बीच नार्थ पेन स्कूल डिस्ट्रिक्ट, जो इस इलाके में प्राथमिक से लेकर उच्च विद्यालय शिक्षा संचालित करता है, युवा हिंदी के साथ वार्षिक अनुबंध के लिए तैयार हो गया, जिसके अंतर्गत हमें गर्मी की छुट्टियों में तीन सप्ताह के सघन स्टारटॉक हिंदी कार्यक्रम चलाने की सुविधा प्राप्त हो गयी। सन  2013 से लैंसडेल में अनवरत चलने वाले  इस कार्यक्रम में अब पहली श्रेणी से लेकर उच्च विद्यालय के विद्यार्थी शामिल होते हैं, जो अपने घरों और समाज में हिंदी बोलने में शर्म महसूस नहीं करते। अनेक भारतीय माता पिता अपने घरों में, जहाँ पहले सामान्य बोलचाल में​ ​हिंदी ​के बजाय किसी अन्य भारतीय भाषा​ (उनकी मातृभाषा , मराठी, गुजराती, तेलुगू ​ ​आदि) ​का प्रयोग  करते थे, इन्हीं बच्चों के कारण हिंदी भाषा का प्रयोग करने लगे हैं। युवा हिंदी संस्थान पेन्सिलवानिया प्रदेश के भारतीय बहुल क्षेत्र, जिसमें बक्स और मोंटगोमरी जिले (काउंटी) प्रमुख हैं, औपचारिक हिंदी शिक्षण के लिए प्रतिष्ठित है। ​बड़ी सावधानी से, लेकिन अपनी उत्कृष्ट भाषा शिक्षण प्रयासों के बल पर, युवा हिंदी संस्थान यह साबित करने में सफल हुआ है कि ​हिंदी भारतीय संस्कृति की संवाहक है, यह समस्त भारतीय प्रवासी संसार की भाषा है, और इसकी शिक्षा आधुनिक शिक्षा पद्धति के ढांचे में समाहित है। युवा हिंदी संस्थान की भाषाई और सांस्कृतिक योजनाओं पर तथा स्टार टॉक में आधुनिक अध्यापन शैली के सम्बन्ध में मैं अन्य लेख में विस्तृत प्रकाश डालूंगा, यहाँ यह बताना प्रासंगिक है कि हिंदी शिक्षण के प्रसार में हिंदी भाषा और साहित्यिकारों के योगदान और कॉलेज-विश्वविद्यालयों में हिंदी  शिक्षा को स्कूल स्तरीय हिंदी शिक्षा के साथ जोड़ने का एक समांतर प्रयास सन 2014 में प्रारम्भ हुआ जिसकी परिणति हिंदी संगम फॉउंडेशन, न्यू जर्सी और भारत में स्थापना के साथ आगे बढ़ी। 

न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय की जानी मानी हिंदी प्राध्यापिका प्रोफेसर गैब्रिएला इलेवा, जो कि स्टारटॉक की अकादमिक टास्क फोर्स में हिंदी-उर्दू के विकास और विस्तार के लिए वर्षों से सक्रिय रहीं हैं, अमेरिका ही नहीं, पूरे विश्व में अनौपचारिक हिंदी शिक्षण को एक नियमबद्ध ढांचे में समाहित करने की पक्षधर रही हैं। वे न्यू यॉर्क और कोलंबिया विश्वविद्यालयों में हिंदी शिक्षक प्रशिक्षण कार्य शालाओं का नियमित आयोजन करती रही हैं। उनके विचारों को सकारात्मक रूप देने के लिए सन 2014 में प्रथम अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन न्यू यॉर्क विश्वविद्यालय के परिसर में किया गया, जिसमें तत्कालीन प्रधान कौंसुल ज्ञानेश्वर मुळे, जो कि एक प्रबल हिंदी समर्थक हैं, के प्रयत्नों से भारत सरकार ने हिंदी साहित्यकारों का एक प्रतिनिधिमंडल भेजा। इस सम्मेलन में गैब्रिएला जी के प्रयासों से अमेरिका के प्रमुख विश्वविद्यालयों के हिंदी प्राध्यापकों के आलावा स्टारटॉक के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। इस सफल आयोजन की उपलब्धि यह रही कि हिंदी से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों के कर्मी एक मंच पर आये। शोध पत्रों को एक वेब साइट पर संयोजित किया गया। भाषा शिक्षण और साहित्य रचना की दूरी काम की गयी। सम्मेलन के माध्यम से यह सन्देश प्रसारित किया गया कि प्रवासी संसार में हिंदी का प्रचार-प्रसार का कार्य सुनियोजित ढंग से किया जाना चाहिए, साथ ही भारत में तैयार होने वाली भाषा सामग्री जैसे, हिंदी विज्ञापन, टेलीविजन और फिल्म मनोरंजन कार्यक्रम, हिंदी वेबसाइट स्तरीय होने चाहिए ताकि उनका प्रयोग प्रवासी संसार में शिक्षा के लिए किया जा सके। क्यों कि इक्कीसवीं सदी में भाषा शिक्षण आज के शिक्षार्थियों की ज़रूरतों के मुताबिक उन्हें विश्व नागरिक बनाने के लिए किया जाना चाहिए ताकि वे सामायिक जीवन की समस्याओं, जैसे, पर्यावरण संरक्षण, गरीबी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के समाधान में योगदान कर सकें। 

 

​सन 2015 में जब द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय ​सम्मेलन आयोजित करने की बात चली तो श्री मुळे ने अपने न्यू यॉर्क स्थित कार्यालय में दर्ज़नो हिंदी कर्मियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि हिंदी प्रसार-प्रचार का कार्य सम्मेलनों और सेमिनार के ज़रिए करना अच्छी बात है, लेकिन इसका स्वरुप वार्षिक होना चाहिए, और इसे एक विधि सम्मत संगठन के अंतर्गत करना चाहिए। इस नयी संस्था के गठन और नामकरण की प्रक्रिया पूरी करने की ज़िम्मेदारी भी मुझे सौंपी गयी। जनवरी 2015 में हिंदी संगम फॉउंडेशन की स्थापना हुई जिसके न्यासी मंडल में अनेक प्रमुख हिंदी प्रेमी शामिल गए, और मैं प्रबंधक की भूमिका निभाते हुए द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के आयोजन में न्यू जर्सी के प्रसिद्ध रटगर्स विश्वविद्यालय के साथ कार्य में जुट गया। यह सम्मेलन भी पहले की तरफ सफल रहा, जिसमें सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि भारत सरकार की मदद से 'हिंदी केंद्र' स्थापित होना चाहिए ताकि अमेरिका में समस्त हिंदी कार्यक्रमों और प्रयासों को एक केंद्रीय स्थान से संयोजित किया जा सके। इस प्रस्ताव पर अभी तक अमल तो न हो सका है, लेकिन हिंदी संगम फॉउंडेशन की प्रगति दिन प्रति दिन होती रही। सन 2016 में तीसरा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन न्यू यॉर्क के भारतीय कोंसुलावास में आयोजित किया गया, और 2017 में आचार्य लक्ष्मी प्रसाद यरलागड्डा के प्रयत्नों से गीतम विश्वविद्यालय, विशाखापत्तनम में चौथे सम्मेलन को सफलता पूर्वक संपन्न किया गया। हिंदी संगम शिक्षा के अतिरिक्त कूटनीति, वाणिज्य-व्यापार, स्वास्थ्य सेवाओं में हिंदी के प्रयोग के लिए कार्यरत है, और आज न्यू जर्सी के कार-विक्रेताओं की हिंदी प्रचार सामग्री को देख सुन कर उनके प्रति आभार व्यक्त करने का समय आ गया है। उनके द्वारा प्रारम्भ इस अभियान को अन्य व्यापारिक और खरीद बिक्री के लिए प्रयुक्त किया जाना चाहिए, क्यों कि अब हिंदी भाषी समुदाय आर्थिक सम्पन्नता के परिसर में प्रवेश कर चुका है। और विज्ञापन जगत बाज़ार के नियमों को भली भांति पहचानता है।   

 

हिंदी संगम फॉउंडेशन न्यू जर्सी के अलावा भारत में भी सक्रिय है। श्री ज्ञानेश्वर मुले के संरक्षण में अनेक कार्यक्रमों को भारत और भारतीय प्रवासी संसार में आयोजित करने की योजनाओं पर कार्य चल रहा है। फॉउंडेशन द्वारा सन  2016 से न्यू जर्सी के फ्रेंक्लिन नगर शिक्षा बोर्ड के सहयोग से नया स्टार टॉक कार्यक्रम को अंजाम दिया गया है, जिसका प्रमुख विषय 'कहानी-सुनना,सुनाना' रहा है। 

युवा हिंदी संस्थान और हिंदी संगम फॉउंडेशन एक दूसरे की पूरक संस्था का रूप में हिंदी के प्रसार और हिंदी शिक्षण को औपचारिक ढाँचे में बाँधने के लिए क्रियाशील हैं। ये प्रयास हिंदी को प्रवासी संसार में भाषा और संस्कृति के नए अध्याय में ले जा रहे हैं, जहाँ जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी के प्रयोग में संकोच या शर्म नहीं होगा। 

 

अमेरिका के ग्राहक केंद्रित समाज में अनेक किस्म की गतिविधियां देखने को मिल रही हैं जिनके आधार पर यह कहना चाहता हूँ कि हिंदी के बदलते तेवर को पहचानने के समय आ गया है। साथ ही हिंदी शिक्षकों, शोधार्थियों और आधुनिक टेक्नोलॉजिकल साधन निर्माताओं के लिए आपने कार्यों को आगे बढ़ाना चाहिए, न कि इस बहस में समय गवाना चाहिए कि हिंदी अंग्रेजी की बराबरी करने योग्य है या नहीं?